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प्रश्नम्याकरण सावजमकुसल साहुगरहणिज्ज अधम्मजण्ण भणंति अणहिगयपुण्णपावा पुणो वि अहिकरण किरियपावत्तगा बहुविहं अनस्थ अवमदं अप्पणो परस्स करेंति ॥ सू० १०॥
टीका-अलियाहि सधि सनिशिहा' अलकाभि सन्धिसन्निविष्टा अली कवादे योऽभिसन्धिः अभिमायस्तत्र सनिविष्टासस्थिताः ' असतगुणुदीरगा' असद्गुणोदीरका अविद्यमानगुणकथकाः 'सतगुणनासगा य' सद्गुणनाशकाच
विद्यमानगुणापलापकाः 'अलियमपउत्ता' अलीकसम्मयुक्ता = असत्यभापणत स्परा 'हिंसा भूभोघाइय' हिंसाभूतोपघातिक = यस्य कथनेन जायमानया हिंसया भूताना प्राणिनाम् उपधाता विनाशो येन भाति तत्तादृश 'सावज्ज' सावद्य-सपापम् ' अकुसल ' अकुशलम् सर्वमाणिनामहितकर ‘साहुगरहणिज्ज' साधुगर्हणीयम् महापुरुषैस्तीर्थकरगणधरैनिन्दित 'अधम्मजगण' अधर्मजननम्पापोत्पादकम् एतादृश 'वयण' वचन भणन्ति । पुनः कथ भूतास्ते ? इत्याह
फिर वे कैसे होते है सो कहते हैं-'अलियाहि' इत्यादि।
टीकार्य-(अलियाहि सधिसनिविट्ठा) अलीकवाद के अभिप्राय में सस्थित मृपावादी (असतगुणुदीरगा) अविद्यमानगुणों के कहने वाले
और (सतगणनासगा य) विद्यमान गुणों के लोप करने वाले होते हैं (अलिय सपउत्ता) इसी तरह असत्यभापण करने में तत्पर बने हुए वे ( हिंसाभुओवघाइय) जिनवचनों के कहने से प्राणियों का हिंसा द्वारा विनाश हो जाता है ऐसे ( सावज्ज, सावद्य, (अकुसल) सर्वप्राणियों के अहितकारक, (साहगरहणिज्ज) साधु पुरुषोद्वारागर्हणीय, एव (अधम्मजणग) अधर्मजनक ( वयण ) वचनों के करने से (भणति)
qvil a sn डाय छे ते सूत्र॥२ ४ छ-" अलियाहि " त्याle टी-“अलियाहि सधिसनिविट्ठा" अशीset मलिभायमा २० भृपावाही " असतगुणुदीरगा" विमान-मस्तित्व विनाना शुनु ज्थन ४२ना२ अने " सतगुणनासगा य" विद्यमान शुषाने पावना२ हाय , “अलियसपउत्ता" माश असत्य मोटवाने त५२ थयेस ते " हिंसाभूओवघाइय" प्राणी सोनी हिंसा याय ते! " सावज्ज" सावध, "अकुसल " समस्त प्रामानु मडित ४२ना। " साहुगरहणिज्ज" साधु पुरुषो द्वारा निध भने “अधम्मजणग" भवन " वयण " क्यने। “ भणति" मोसे छे “अणहिगयपुण्णपावा"