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________________ सुशिनो टोका म0 सू० १०-११ मृपायादीनां जीपघातफवचननिरूपणम् २१५ 'अणहिगयपुण्णपानाः अनधिगतपुण्यपापाः = पुण्यपापजनितफलज्ञाननिकलाः, 'पुणो वि' पुनरपि 'अहिकरणकिरियापपत्तगा' अधिकरणक्रियापवर्तकाः-अधिकरण पापारम्भः तस्य क्रिया व्यापारः तस्य प्रवर्तकाः, 'अप्पणो परस्स य' आत्मन परस्य च 'बहुहि' बहुविधम् 'अणत्य' अनर्थ 'अवमद्द ' अवमः = विनाश 'करे ति ' कुर्वन्ति ।। म. १०॥ पुनः किं कुर्वन्ती ? त्याह-एवमेवे' त्यादि। ___ मूलम्-एवमेव जपमाणा महिसे सूयकरे य साहेति घाय गाणे, ससपसयरोहिसे य साहति वागुराण, तित्तिरवकलावे य कविजल-कवोयगे, य साहति सउणीणं, झसमगरकच्छभे य साहेति मच्छियाणं, संखके खुल्लए य साहेति मगराण, अयगर-गोणस-मडलि दवीकर मउली य साहेति वालियाण, गोहा सेहा य सल्लग सरडए य सात लुद्धगाण, गयकुल वानरकुले य साहेति पासियाण, सुकवरहिणमयणसालकोइल हसकुले सारसे य साहेति पोसगाण, वधवधजायण च साहेति गोम्मियाणं, धणधन्नगवेलए य साहेति तकराण, गामनगर पट्टणे य साहेति चारगाण पारघायग पथघायगे साहेति गथि भेयाण, कय च चोरिय जगरगुत्तियाणं साहेति लछण निल्लछणयोलते हैं । (अणरिंगयपुण्णपावा ) तथा जो पुण्य और पाप के फल ज्ञान से रहित होते हैं। तथा (पुणो वि अहिंगरणकिरियापवत्तगा) थार २ पापारभ की क्रियाओं के प्रवर्तक होते हैं वे (अप्पणो परस्स य) अपना और पर का ( यहुविह) अनेकविध (अणस्थ ) अनर्थ और ( अवमद्द) विनाश (विराधना) ( करेंति ) करते हैं |सू १०॥ तयारी पुन्य भने पापना शानथी २हित य , तथा " पुणो वि अहिंगरण किरियापवत्तगा" पा२ १२ पापा२ सनी लियासोना प्रवत हाय छ, ते "अप्पणो परस्स य" पातानु भने पारानु " बहुविह' मने प्रारे "अणत्य" अडित भने "अवमह" विनाश "विराधना' "करे ति"रे छ ॥-१०॥
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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