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________________ ૨૮૦ प्रश्नव्याकरणसूत्रे हे वायजोगजुत्तं, पंच य खंधे भांति केइ, मणं मण जीविका वदंति, वाऊजीवो त्ति एवमाहसु सरीर साइयं सनिधणं इह भवे एगभवे, तस्स विप्पणासंमि सव्वनासो त्ति एव जपंति मुसावाई ॥ सू० ४ ॥ 1 , टीका--'अरे' अपरे = उक्तेभ्योऽन्ये ' नत्यिगवाणी' नास्तिकवादिनः= ' नास्ति परलोकः' इति मतिर्येषा ते नास्तिका स्ते च ते वादिनः प्रत्यक्षप्रमाण बादिनश्चाका तथा 'यामलोगलाई ' तथा नामलकादिनः, वाम विरुद्ध लोक - बदन्ति ये ते तथा सतामपि लोकवस्तूनामसच्च प्रतिपादका शून्य वादिनः इत्यर्थः, ते हि ' भणन्ति = प्रदन्ति यत् ' नस्थि जीनो' नास्ति जीवः सुखदुःखादि भोक्ता तत्साधक प्रमाणाभावात् यतो हि न तत्र प्रत्यक्ष प्रमाणमुपक्रमते चक्षुरादी न्द्रियविपयत्यात्, नाप्यनुमानं तत्र प्रमाणम्, तस्य व्याप्तिपक्षधर्मताज्ञानाद्यधीनतया तथा - ' अचरे नत्यिगवाहणो ' इत्यादि टीकार्थ - ( अवरे ) इन पूर्वोक्त व्यक्तियों से भिन्न (नत्यिगवाइणो ) जो नास्तिकवादी हैं-' परलोक नही है ' इस प्रकार की जिनकी बुद्धि है ऐसे केवल एक प्रत्यक्ष प्रमाण मानने वाले चार्वाक, तथा ( वामलोगवाई ) arrot वादी - शून्यवादी, ये लोक मे रही हुई वस्तुओं को असत्रूप से प्रदिपादित करते हैं वे ( भणति ) कहते है कि (नत्यिजीव) सुख, दुःख आदि अवस्थाओं का भोक्ता जीव नाम का कोई पदार्थ नही है, कारण कि इसके साधक प्रमाणों का अभाव है प्रत्यक्षप्रमाण इसका साधक इसलिये नही होता है कि चक्षुरादिक जो इन्द्रिया है वे उसे अपना विषयभूत नही बनाती है । अनुमान से भी उसका ग्रहण नहीं होता है, क्यो कि अनुमान से साध्य और साधन की व्याप्ति का एव पक्ष तथा - " अवरे नत्थिगवाइणो " त्याहि टीडार्थ -“अवरे' ते पूर्वोक्त व्यक्तियोथी नुहान प्राश्ना 'नथिगवाइणो” જે નાસ્તિકવાદી છે-“ પરલોક નથી ” એ પ્રકારની જેમની માન્યતા છે એવા, ફક્ત એક પ્રત્યક્ષ પ્રમાણને જ માનનાર ચાČકવાદી, તથા " वामलेोगवाई વામલાકવાદી વામમાર્ગી, તે સૃષ્ટિમા રહેલ વસ્તુઓને અસત્ રૂપે પ્રતિપા " हित उरे छे तेथे ' भणति " हे छे " नत्थि जीवो " અવસ્થાના ભાકતા જીવ નામના કોઈ પદાર્થ નથી, કારણ કે તે સિદ્ધ સુખ દુખ માદિ કરવા માટેના પ્રમાણેાના અભાવ છે પ્રત્યક્ષ પ્રમાણ તેનુ બાધક તે કારણે હતું નથી કે ચક્ષુ આદિ જે ઈન્દ્રિયા છે તે તેને પોતાના વિષય રૂપ મનાવી શકતી નથી અનુમાનથી તેને ગ્રહણ કરી શકાતુ નથી કારણ કે અનુમાનમા સાય
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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