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________________ सुदर्शिनी टीका म० १ सू० ३६ परस्परवेदनोदीरणायां नारकदशावर्णनम् १२७ छेदनेऽपि अभग्नाः नखा येपा ते तथा ते च ते लोहतुण्डा लोहवत्कठोरचन्चुकाश्व, वैः 'ओपइत्ता ' अपत्य अन्तराल एर आक्रम्य ' पक्खाहयतिक्षणक्ख विकिन जिन्मच्छित्तनयणनिद्दओलुग्गविगयवयणा' पक्षाहततीक्ष्णनखनिक्षिप्त जिहासिप्तनयननिर्दयानमग्णविरुवपदना:- पपाय ' पक्षाहताः-पौराहता ताडिताः तीन विक्षिप्ता=आकृप्या मुखाब्दहिनिफाशिता जिहाः येपा ते तथा, आक्षिप्ते पाहिप्कते नयने येपा ते तथा, अतएव निर्दय यथास्यात्तथा अवरग्ण-भग्न विकृत विरुपी कृत च बदन येपा ते तथा, ततः सर्वेषां कर्मधारयः, उक्कोसता' उत्लोशन्ता हा हा शब्दैराकन्द कुर्वन्त 'उप्पयता' उत्पतन्तः परमवेदनाभिरी: विकदष्टफपिपद् गगने उन्लन्तः 'निवडता' निपतन्तः पृथिव्या लुठन्तः, ‘भमता' भ्रमन्त =इतस्ततः पलायमानाः दुःखमनुभनन्ति ॥ ३६॥ करने पर भी-वैसे ही बने रहते हैं-नही टूटते हैं तथा चोंचे जिनकी लोह के जैसी कठोर होती है, वे उन्हें (ओवइत्ता)चीच ही में पकडकर ( पक्खाय-तिक्खणखविकिन्नजिभडियनयणनिदओलग्गविगतवयणा) अपनी पाखों से आहत करते है, तीक्ष्ण नखों से उनकी जीभ को उनके मुख से वाहिर निकाल लेते हैं और दोनों आखों को भी बाहिर काढ लेते हैं । इस तरह निर्दयतापूर्वक विरूपरूप वाले बनाये गये वे पापकारी नारकजीव (उकोसता य) हाय हाय शब्द करते हुए ( उप्पयतो) विच्छ से काटे गये बदर की तरह अत्यत वेदनाओं से आकाश मे ऊपर को उछलते है और फिर (निवडता) नीचे गिरते है। (भमता) गिर कर फिर इधर उधर भागते हुए दुःखों का अनुभव करते है ।सू ३६ ।। પણ એવા ને એવા જ રહે છે-તૂટતા નથી તથા જેમની ચાચ લેઢાના જેવી ५४ लाय छे, मे ते पक्षी। तभने “ ओवइत्ता" ५-ये ४ ५४ीन " परसाहय-तिक्राणक्खविकिन्नजिभछियनयणनिदओलुग्गविगतवयणा " पातानी પા વડે મારે છે, તીક્ષણ નાની મદદથી તેમની જીભને તેમના મુખમાથી બહાર ખેચી કાઢે છે અને બન્ને આખેને પણ બહાર કાઢી નાખે છે આ शत नियताथी मे मनापामा सावता ते पा५री ना२४ी व “उकोसता य" य । डाय! ४२ता " उप्पयतो" पीछी उ भाया जाय त्यारे કૂદાકૂદ કરતા વાનરની જેમ, અત્યત વેદનાથી વ્યાકુળ થઈને આકાશમાં ઉપ २नी मा जे छ, भने "निवडता" जी पाछ। नाये ५ छ “ भमेता" નીચે પડીને વળી આમ તેમ નાસ ભાગ કરતા તેઓ દુ ખ અનુભવે છે સૂ૩૬
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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