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________________ सुशिनी टीका अ १ सू० २४ यातकर्म तथाविधफलनिरूपणम् ९५ मस्तरशूलादय , जरावार्धक्य च, तैः पीडितेपु-व्याप्तेपु, 'अईनिन्चधयारतमिस्सेस' पतीवनित्यान्यकारतमिस्रपु-अतीव अत्यन्त नित्यान्धकारेण तमिसेपु-धोरान्धकारस्वरूप प्राप्तेपु, अतएव 'पइभएम' प्रतिभयेषु-प्रतिवस्तुभययुक्तेपु, 'क्वगयगहचदमूरणक्खत्तजोइसेस' व्यपगतग्रहचन्द्रमूरनक्षत्रज्योतिप्केपु =ग्रहचन्द्रमूर्यनक्षत्रज्योतिप्कार्जितेपु, ' मेयासामसपडल पोच्चडपृयरुहिरुक्किण्णविलीचिक्कणरसियाावण्यकुहियचिस्मल्लकद्दमेसु । मेदोवसामासपटलपोच्चडपूयरुधिरोत्कीर्णविलीनचिक्कणरसिकव्यापनकुथित चिक्सलादमेपु-मेट: शरीरस्नेहविशेष , उसाची इति भापा, मास-प्रसिद्ध तेषां यत्पटल-रागिः 'पोच्चड गिलगिलायमान पूय= पीप' 'परू' इति प्रसिद्ध, रुधिर-शोणित तेन उत्कीर्ण च्याप्त विलीन-सभृत, चिकण-गुन्द्रवत् , 'रसिका' विकृतरुधिर व्यापन्न-विनष्टस्वरूपम् अतए-कुपित दुर्गन्धित 'चिखल ' शिथिलकर्दमः, पर्दमा धनकर्दमश्च येषु ते तथा तेषु । ' कुलानलपलित्तजालमुम्मुरअसिक्सुर अवस्था है इनकी पीडा या प्रतिकार-उपाय रहित होती है। (अईव णिचधयारतमिस्सेसु) यहां पर सर्वदा घोरातियोर अधकार रहता है । (पहभण्सु ) यहां की प्रत्येक वस्तु भय से भरपूर रहती है। (ववगय गहचदररणवखत्तजोइण्सु) न यहां पर कोई ग्रह है न कोई चन्द्र है, न सूर्य है, न नक्षत्र हैं। ( मेयवसामसपडल-पोचड-पूय-रुहिरुकिण्ण विलीण-चिकण-रसिया वावण्णकुहियचिखल्लकद्दमेसु) मेद, वसाचर्वी और मास का ढेर इन स्थानों में सदा लगा रहता है। तथा पोचड गिलगिलायमान पूय-पीर, एव रुधिर से व्याप्त, गोंद के समान चिकने भरे हुए व्यापन्न दुर्ग धित ऐसे विकृत खून, से तथा चिकने धनकर्दम से ये स्थान सदा व्याप्त रहते हैं । (कुकलानल-पलित्तनाल-मम्मुरમાથાનો દુખાવો આદિ જે રેગે છે વૃદ્ધાવસ્થા આદિ જે અવસ્થા છે, તેમની પીડાને ત્યાં કોઈ પણ ઇલાજ હોતા નથી તે પ્રતિકાર રહિત હોય छे, “अईव णिचधयारतमिरसेसु" मी डायम घारमा ३।२ २१ ५४४२ २९ छे “पइभएसु" महीनी १२ पतु लयन डाय छ " ववगयगहचदसूरणखि जोइसेसु" मी 15 ग्रह नथी, स्यन्द्र नथी, सूर्य नथी 3 नक्षत्र ५ नथा " मेयवसा मसपडल-पोचह-पूय-रुहि रुण्णि -विलीण-चिकण, रसियावावण्णकुहिय चिखल्लकद्दमेसु" मेह, पसा यी अने भासना सा ते स्थानामा सो પડેલા હોય છે તથા પિચ્ચડ–કિચ્ચડ અને પૂર પીબ તથા રક્તથી વ્યાપ્ત, ગુ દરના જેવા ચીકણ, ભરેલા દુર્ગ ધમય વિકૃત લેહીથી, તથા ચીકણા કાદવથી ते स्थान। सहा ७वाये २७ “कुकूलानल-पलित्तजाल-मम्मुर-असिक्खुर
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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