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________________ प्रश्नव्याकरणस्ने इत्यादि- महब्भय' महाभया 'अविस्सामवेयण' अविनामवेदना प्रतिसमयमनुभूयमानाऽशातवेदना, 'दीहकालबहुदुरखसकड' दीर्घालबहुदु'खसकटा%3D दीर्घकालमभिव्याप्यवर्तमानः बहुभिर्नानाविधै शारीरमानसर्दुखैः सम्टा-सकुला, तादृशीं 'नरयतिरक्खजोणि ' नरकतिर्यग्योनि-नरकेपु तिर्यक्षु च या योनि = उत्पत्तिस्थान ता 'बड्डति' वर्धयन्ति तासु तासु नानाविधास योनित्पूत्पद्य च महावेदनामनुभयन्तीत्यर्थ । ते प्राणवधकारकाः नरकतिर्यगादि कुयोनिषु परिभ्रमण कुर्वन्तो जन्म मरणाधविच्छिन्नपरम्परया यथा घोरातिघोरदुःखमनु भवन्ति तथोच्यते-'इओ' इत्यादि-ते माणधकारकाः 'आउक्खए' आयुः क्षये 'इओ' इता-मनुष्य भवात् 'चुया' च्युताः-गृताः सन्तः ' असुभकम्मर हुला' अशुभकर्म बहुला:-माणिवधपापकर्मपचुरा सन्तः 'नरएसु' नरकेपुवति ) भरक तिथंच योनि को बढाते है जो योनि (मत्भय) अत्यतभयप्रमद, एव (अविस्सामवेयण) प्रतिसमय अनुभूयमान अशातवेदना सम्पन्न है-तथा (दीहकाल बदुक्खसकड ) जिसमें दीर्घकालतक जीव नाना प्रकार के शारीरिक एव मानसिक दुःखो को भोगा करता है। ऐसी उस विविध शारीरिक मानसिक दुखों से सकुल नरक तिर्यच योनि को वढाते हैं। तात्पर्य इसका यह है कि जो प्राणवध करनेवाले जीव है वे उन २ नाना प्रकार की योनियों में उत्पन्न होकर महान वेदना ओंका अनुभव करते रहते हैं । इस प्रकार नरक तिर्यच आदि कुयोनियों में परिभ्रमण करते हुए वे प्राणवधकारी जीव जन्म मरण आदि की अविच्छिन्न परम्परा से जिस प्रकार घोरातिघोर दुःखों को भोगते है, अब सूत्रकार इसी विषय को या स्पष्ट करते हैं (इओआउक्खए चुया) आयु के क्षय होने पर मनुष्यभव से मरकर भागवध कारक जीव योनिन वारेछ,र योनि महत्भय " अत्यत लयप्रह, मन " अविस्साम वेयण" प्रतिपणे मानुलवाती मशाना बेहनाथी युत छ, तथा “दीहकाल बहुदुक्खसकड" माही सुधी ७१ विविध प्राश्ना शारीR४ अने. માનસિક દુખેને ભગવ્યા કરે છે એવી વિવિધ શારીરિક અને માનસિક દુખેથી યુક્ત, તે નરક તિર્થં ચ એનિને તેઓ વધારે છે તેનું તાત્પર્ય એ છે કે પ્રાણવધ કરનાર છે ઉપરોક્ત વિવિધ ચેનિયમ ઉત્પન્ન થઈને મહાન વેદના અનુભવે છે. આ રીતે નરક તિર્થં ચ આદિ કનિમાં પરિભ્રમણ કરતા તે પ્રાણવધ કરનારા જન્મ મરણ આદિની અતૂટ પર પરા પૂર્વક જે જે પ્રકારના ભય કરમા ભય કર ૬ એ ભેગવે છે, તે વિષયનું હવે સુત્રકાર स्पष्टी२५ ४२ छ "इओ आउक्खए चुया" मायुष्यमा क्षय यता प्रापधारी
SR No.009349
Book TitlePrashna Vyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size36 MB
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