SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 554
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ३३ जम्बूद्वीपस्यायामादिकनिरूपणम् ५३९ - सम्प्रति-किं परिणामोऽसौ जम्बूद्वीप इतिज्ञातुं प्रश्नयन्नाह-'जंबुद्दीवे गं' इत्यादि, 'जंबुद्दीवे ण भंते ! दीवे' जम्बूद्वीपः खलु भदन्त ! द्वीपः सर्वद्वीपमध्यवर्ती द्वीप इत्यर्थः 'किं पुढवि परिणामे' किं पृथिवी परिणाम:-पृथिवीपिण्डमयः पृथिव्या विकाररूपः किम्, अथवा-'आउपरिणामे' अप्परिणाम: जलपिण्डमयः जलस्य विकाररूपः किम्, एतादृशौ स्कन्धावचित्तरजः स्कन्धादिषद् अजीव परिणामौ अपि भवत इत्याशङ्काआह-'जीव परिणाम इति, किमयं जम्बूद्वीपः जीवपरिणामः जीवस्य परिणामो जीवमयः, घटादिवदनीवपरिणामोऽपि भवतीत्याशझ्याह-पोग्गलपरिणामे' किमयं पुद्गलपरिणामः केवलं पुद्गलपिण्डमय इत्यर्थः, तेजसस्तु एकान्तसुषमादौ अनुत्पन्नत्वेन एकान्तदुष्पमादौ विनश्वरशीलत्वेन अनागत काल में यह रहेगा क्यों कि किसी भी काल में इसका विनाश नहीं होता है अत एव यह 'धुवे' कूट की तरह ध्रुव-स्थिर है और ध्रुव होने के कारण ही यह 'णियए' नियत है-सर्वदा अवस्थायी है-कदाचित् भी यह अनियत नहीं है 'सासए' शाश्वत है 'अव्वए' अव्यय है विनाश से रहित है अतएव 'अवट्टिए' अवस्थित है, एकरूप से विद्यमान है "णिच्चे' द्रव्यरूप होने से इसमें उत्पादादि धर्मों का विरह है ऐसा ध्रुवादि विशेषणों वाला यह 'जंबुद्दीचे दीवे पन्नत्ते' जम्बूद्वीप नामका द्वीप कहा गया है, अब गौतमस्वामी पुन:प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं-'जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे किं पुढवी परिणामे' हे भदन्त ! यह जम्बूद्वीप नाम का जो द्वीप है वह क्या पृथिवी का परिणामरूप है-पृथिवी का पिण्डमय है-पृथिवी का विकाररूप है ? अथवा-'आउ परिणामे' जल का परिणामरूप है ? जल का पिण्डमय है जलका विकार रूप है ? 'जीवपरिणामे' या जीव का परिणामरूप है ? जीवमय है ? 'पोग्गलपरिणामे' अथवा-पुद्गल का परिणामरूप है ? पुद्गल का पिण्डरूप है ? यदि जम्बूद्वीप को तैजस का परिणाम माना जाय तो પણ કાળે એને વિનાશ થતે નથી આથી તે હુવેર ફૂટની જેમ ધ્રુવ—સ્થિર છે અને ધ્રુવ पाना २0 से 'णियए' नियत छ-सा अस्थायी छे-नायित् ५ ते अनियत नथा. सासए' शाश्वत छ. 'अव्वए' अव्यय छे. विनाशयी २हित छे. माथी 'अवदिए' भजस्थित छे. ४३५था विद्यमान थे. णिच्चे' द्रव्य३५ वाया ये Gulal धर्माना (१२७ छ मा वाहि विशेषगुवाणा 20 'जंबुद्दीवे दीवे पन्नत्त' पूदी५ नामनी दी५ डेवामा मान्य छे. हवे गौतमस्वामी पुन: प्रभु मा प्रमाणे पूछे थे-'जंबूदीवेणं भंते ! दीवे पुढवी परिणामेन्त I मा म्यूद्वीप नामनी रे दी५४ो छ ते शुश्विना पाराम३५ छ-विन पिएमय छ-विना वि४१२३५ छ ? अथवा 'आउ परिणामे' रणना परिणाम३५ - १२१ (१९७मय 2-1ना qि१२३५ छ ? 'जीर परिणाम भय बना परिणाम३५ छ ? भय छ ? 'पग्गिलपरिणामे' या पुसना परि. મરૂપ છે ? પુદ્દગલના પિડરૂપ છે? જમ્બુદ્વીપને તૈજસનું પરિણામ માનવામાં આવે
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy