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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सु. ३० ग्रहादीनां शीघ्रगत्यादिनिरूपणम् ४९९ डिया' कतरे सर्वमहर्द्धिकाः सर्वांपेक्षया अधिकाधिकऋद्धिमन्तः के 'कयरे सव्वप्यडिया' कतरे च सर्वात्पर्द्धिकाः सर्वापेक्षया हीनऋद्धिमन्तश्च के इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'तारारूवेहितो णक्खत्ता महिड्डिया' तारारूपेभ्य स्तारारूपापेक्षया नक्षत्राणि महर्द्धिकानि 'णक्खत्तेर्हितो गहा महिड्डिया' नक्षत्रेभ्यो नक्षत्रापेक्षया ग्रहाःभौमादयो महर्द्धिकाः 'गहिंतो सूरिया महिड्डिया ' ग्रहेभ्यो ग्रहापेक्षया सूर्या महर्द्धिकाः 'सूरेहिंतो चंदा महिडिया' सूर्येभ्यः सूर्यापेक्षया चन्द्राः महर्द्धिकाः अत एव 'सव्वप्यडिया तारा रूवा' सर्वोल्पर्द्धिका स्ताराख्ना देवा भवन्ति 'सव्वमहिडिया चंदा' सर्वमहर्द्धिकाः सर्वान पेक्षाधिकऋद्धिमन्त चन्द्रा भवन्ति, अयं भावः - गतिविचारणायां ये यदपेक्षया शीघ्रगतयः; पड़िया' कौन सर्वमहर्द्धिक सब की अपेक्षा अधिक ऋद्धिवाला हैं? और कौन सर्व की अपेक्षा अल्प ऋद्धि वाले हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा ! तारारूवेहिंतो णक्खत्ता महिडिया' हे गौतम । तारारूपों की अपेक्षा नक्षत्र महंती ऋद्धिवाले हैं, 'गक्खतेहिंतो गहा महड़िया' नक्षत्रों की अपेक्षा ग्रह - भौमादिक (मंगल) ग्रह - महती ऋद्धि वाले हैं। 'गंहिंतो सूरिया महिडिया' ग्रहों की अपेक्षा सूर्य महाऋद्धि वाले हैं, 'सुरेहितो चंदा महिडिया' औरसूर्यो की अपेक्षा चन्द्र महाऋद्धिवाले हैं। इसतरह 'सव्वष्पड्डिया ताराख्वा सव्वमहिड्डिया चंदा' सब से कम ऋद्धिवाले तारारूप हैं और सब से अधिक ऋद्धि वाले चन्द्र हैं। तात्पर्य यही है किं गति विचारणा में जी जिन की अपेक्षा शीघ्र गति वाले कहे गये हैं वे उनकी अपेक्षा ऋद्धिविचारणा में उत्क्रम से महर्द्धिक कहे गये हैं ऐसा जानना चाहिये । एकादश द्वार समाप्त ॥ द्वादश द्वार वक्तव्यता 'जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे ताराए य ताराए म' हे भदन्त ! जम्बूद्वीप नामके મહુદ્ધિ —પ્રધાની અપેક્ષા અધિક ઋદ્ધિવાળ છે ? અને કાણુ સની અપેક્ષા અલ્પઋદ્ધિવાળા छे ? माना उत्तरभां अलु हे छे - 'गोयमा ! तारारूवेहिंतो णक्खत्ता महिइडिया' हे गौतम! ताराइयोनी अपेक्षा नक्षत्र भडती ऋद्धिवाणा छे, 'णक्खत्तेहिंतो गहा महडूढिया' नक्षत्रानी अपेक्षा श्रद्ध-लोभाहिङ (भगत) श्रड-भडती ऋद्धिराणा छे. 'गहेहिंतो सूरिया महिड्रढ़िया ' थडेंनी अपेक्षा सूर्य महाऋद्धिवाणा छे. 'सूरोहिंतो चंदा महिइढिया' मने सूर्यानी अपेक्षा शुन्द्र भडाऋद्धिवाजा छे. भावीरीते 'सब्ब पडूढिया तारारूवा सव्त्रमहिइढिया चंदा' सौंधी એછી ઋદ્ધિવાળા તારારૂપ છે અને સહુથી અધિક ઋદ્ધિવાળા ચન્દ્ર છે. તાપય એજ એ કે ગતિવિચારણામાં જે જેમની શીઘ્રગતિવાળા કહેવામાં આવ્યા છે તે તેની અપેક્ષા ઋદ્ધિવિચારણામાં ઉત્ક્રમથી મહુદ્ધિ કહેવામાં આવ્યા છે એ પ્રમાણે જાણવુ જોઈએ. એકાદંશદ્વાર સમાપ્ત દ્વાદશદ્વાર વક્તવ્યતા 'जंबुद्दीवे णं भंते |दीवे ताराए य ताराए य' से लद्वन्त ! हम्मूदीय नामना' द्वीपमा '
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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