SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ जम्बूद्वीपप्रति धुतिनियमादिकमपेक्ष्याणुत्वमपि न संभववि कुतस्तेपा चन्द्रसूर्यैः सह तुल्यसमिति प्रथमद्वारम् । सम्प्रति-द्वितीयं द्वारं प्रश्नयितुपाह-'एगमेगस्त णं भंते' इत्यादि, 'एगमेगस्स में भंते ! चंदस्स' एकैकस्य खलु भदन्त ! चन्द्रस्य 'केवइया महग्गहा परिवारो' कियन्त:कियत्संख्यका महाग्रहाः भौमादयः परिवारः परिवाररूपा भवन्ति, तथा-'केवइया णखत्ता परिवारो' कियन्ति-कियत्संख्यकानि नक्षत्राणि परिवारः परिवारभूतानि भवन्ति तथा'केवइया तारागणकोडाकोडीओ पन्नत्ताओ' कियत्यः क्रियत्संख्यकास्तारागणकोटाकोटयः परिवाररूपाः प्रज्ञप्ता:-कथिता इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठासीइ महग्गहा परिवारो' अष्टाशीतिर्महाग्रहा: परिवारः, हे गौतम ! एकैकस्य चन्द्रस्य प्रत्येकमष्टाशीति संख्यका महाग्रहा भौपादयः परिवारभूताः प्रज्ञप्ता स्तथा-'अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो' अष्टाविंशतिरष्टाविंशति संख्यकानि नक्षही नहीं होता है तात्पर्य-यही है कि अकाम निर्जरादि के योग से देवत्व पद की प्राप्ति होने पर भी देवद्धि के अलाभ होने के कारण उन देवों में चन्द्र सूर्यादिकों से यति विभवादिक की अपेक्षा लेकर अणुन की भी संभावना जय नहीं होती है-तब उनके साथ तुल्यता की बात तो कैसे विचारित हो सकती है। प्रथम द्वार कथन समाप्त । द्वितीय द्वार कथन 'एगमेगस्स णं भंते ! चंदस्स केवइया महग्गहा परिवारों' हे भदन्त ! एक एक चन्द्र के परिवार रूप भौमानिक महाग्रहःकितने हैं ? 'केवया णक्खत्ता परिवारा' तथा कितने परिवारभूत नक्षत्र हैं ? तथा-'केवया तारागणकोडाकोडीओ' कितनी तारागणों की कोटी कोटी परिवार भूत हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! अट्ठासीह महग्गहा परिवारो' हे गौतम! एक एक चन्द्र के દેના સંબંધમાં આવ્યુત્વ અને તુલ્યત્વને વિચાર જ થતું નથી. તાત્પર્ય એ છે કે અકામ નિર્જરાદિના વેગથી દેવત્વપદની પ્રાપ્તિ થવા છતાં પણ દેવદ્ધિને અલાભ હોવાના કારણે તે દેવમાં ચન્દ્રસૂર્યાદિકેથી ઘુતિ વિભાવાદિકની અપેક્ષા લઈને અણુત્વની પલું શક્યતા જ્યારે હોતી નથી ત્યારે તેમની સાથે તુલ્યતાની વાત તે કઈ રીતે વિચારણામાં લઈ શકાય? પ્રથમદ્વાર કથન સમાપ્ત દ્વિતીયદ્વાર કથન'एगमेगस्स णं भंते ! चंदस्स केवइया महग्गहा परिवारो' महन्त ! ४ ४ यन्द्रना परिवार ३५ भौमासि भाबड ४८सा छ ? 'केवइया णक्खत्ता परिवारा' तथा सा परिपारभूत नक्षत्र छ १ तथा 'केवइया तारागणकोडाकाडीओ' Beai dunjानी घटानटी परिवारभूत छे ? 40 प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४९ छे-'गोयमा ! अढासीइ महग्गहा परिवारों गौतम! मे ४ यन्ना परिवा२३५ मीमा४ि महापड ८८ छ तया-'अट्ठावीसइ
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy