SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 730
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कार स. १० अच्युतेन्द्रकृततीर्थकराभिषेकादिनिरूपणम् ७१९ 'अप्पेगइया हक्कारेंति' अप्येककाः देवाः हकारयन्ति हकां ददति एवं पुकारेंति' एवं पून्कुर्वन्ति 'वकारेंति' वकारयन्ति बक्क बक्क मित्येवं शब्दं कुर्वन्ति 'ओवयंति' अवपतन्ति नीचैः पतन्ति उप्पयंति' उत्पतन्ति उर्वी भवन्ति 'परिवयंति' परिपतन्ति तिर्यग्निपतन्ति 'जलंति ज्वलन्ति ज्वालारूपा भवन्ति भास्वराग्रितां प्रतिपाद्यते इत्यर्थः तवंति' तपन्ति मन्दागारतां प्रतिपाद्यन्ते 'पयवंति' प्रपतन्ति दीप्ताङ्गारतां प्रतिपद्यन्ते 'गज्जति' गर्जन्ति गर्जनं कुर्वन्ति मेघवत् 'विजआवंति' विद्युतं कुर्वन्ति विद्युतवत् प्रकाशमानाः भवन्ति 'वासिति' वर्षन्ति च 'अप्पेगइया देवुक्कलियं करेंति' अप्येककाः देवाः देवोत्कलिकां देवानां वातस्येव उत्कलिकाः भ्रमविशेपस्तां कुर्वन्ति एवं देवकहकहगं करेंति' एवं देवानां कहकहकं प्रमोदभरजनितकोलाहलं कुर्वन्ति 'अप्पेगइया दुह दुहगं करेंति' अप्वेककाः देवा दुइदुहगं कुर्वन्ति, अनुकरणमेतत् 'अप्पेगइया विकियभूयाई रूवाई विकुवित्ता पणचंति' अप्पेककाः देवाः विकृतभूतानि विकतानि अधरलम्वन मुखव्यादानने त्रस्फाटनादिना भयानकानि भूतानि भूतादिरूपाणि विकओवयंति, उप्पयंति, परिवयंति, जलंति, तवंति, पवयंति, गज्जंति, विज्जुयावंति, वासिति' कितनेक देवों ने हक्का दिया पूत्कार किया, वक्क बक्क इस प्रकार से शब्दो का उच्चारण किया नीचे आना ऊंचे जाना, तिरछे जाना अग्नि की ज्वाला जैसे तपना, मन्द अग्नि के अङ्गारों के जैसे तपना दीस अंगारावस्था को धारण करना, गर्जना करना विजली की तरह वरसा करना ये सब कार्य किये 'अप्पेगइया देवुलियं करेंति' एवं 'देवकहकहं करें ति' कितनेक देवों ने वायुकी तरह घूमना-भ्रमण करना-यह काम किया कितनेक देवों ने प्रमोद के भार से युक्त होकर कोलाहल करना प्रारम्भ किया 'अप्पेगइया दुहदुहगं करेंति, अप्पेगइया विकियभूयाई रुवाई विउवित्ता पणच्चंति' कितनेक देवों ने दुहदुह शब्द किया, कितनेक देवों ने विकृत भूत रूपादिकों की, अर्थात् ओष्ठों को लम्बा करना मुखका फाडना नेत्रों को फोडना आदि २ रूप विकुर्वणा करके अच्छी तेम 21 वाव्ये अच्छसिना पय १६४५यु. 'अप्पेगइया हक्कारंति वक्कारंति, ओवयंति, उप्पयंति, परिवयंनि, जलंति, तवंति, पवयंति गजंति, विज्जुयावंति. वासिंति' કેટલાંક દેવોએ હાકળ કરી, પૂત્કાર કર્યું, વક વક આ પ્રમાણે શબ્દો ઉચ્ચરિત કર્યા. નીચે જવું, ઉપર આવવું ઊંચે જવું, વક્રગતિએ જવું, અગ્નિના જ્વાળાની જેમ સંતપ્ત થવું મન્દ અગ્નિના અંગારાની જેમ સંતપ્ત થવું અંગારાવસ્થા. ધારણ કરવી. ગર્જના કરવી, वित्नी म यम', वर्षा ४२वी, २ मा यी ४ा. 'अपेगइया देवुक्कलियं करें ति तभा 'देवकहकहं करेंति' ४४ वय वायुनी रेभ. धूम-श्रम ४२३:- म यु. हैटसा हेवा प्रभाहना माथी युत / inट ४२पानी शरमात ४३. 'अप्पेगइया दुहु दुहगं करे ति, अपेगइया विकियभूयाई रूवाई वित्तिा पणच्चंति' કેટલાક દેએ દુહ-દુહ આ જાતને શબ્દ કર્યો. કેટલાક દેવાએ વિકૃતભૂત રૂપાદિકની એટલે કે એણ્ડ લંબાવવા, સુખ વિસ્તૃત કરવું નેત્રે પ્રક્ષારિત કરવા વગેરે–વગેરે રૂપ છે
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy