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________________ प्रकाशिका टीका - पञ्चमवक्षस्कारः सु. ७ इज्ञानेन्द्रावसरनिरूणम् ËË तिक्खुतो याहिणपयाहिण करेइ करिता' वंदइ नमंस बदित्ता नर्मसित्ता पच्चासणे णाइदरे सुस्समाणे णमंसमाणे अभिमुद्दे विणणं पंजलिउडे' एतेषां संग्रहः अथातिदेशेन अवशिष्टानां सनत्कुमारादीन्द्राणां वक्तव्यतामाह - ' एवं अवसिद्वावि' इत्यादि 'एवं अवसिहावि' एवम् अवशिष्टा अपि 'इंदा भाणियन्त्रा' जाव अच्चुओति' इन्द्रा वैमानिकानां भणितव्या यावत् अच्युतेन्द्रः, एकादशद्वादश कल्पाधि नतिरिति, अत्र यो विशेषस्तमाह- 'इमं णाणत्त' इदं नानालम्, भेद: 'चउरासीइ, असीइवावत्तरि सत्तरीय सङ्घीय पण्णाचत्तालीसा तीसावीसा दससहस्सा ॥१॥ अत्र च अन्तिम सहस्रपदस्य पत्येकं संवन्धः तथा च चतुरशीतिः सहस्राणि शक्रस्य अशीतिः सहस्राणि ईशानेन्द्रस्य द्विसप्ततिः सहस्राणि सनत्कुमारेन्द्रस्य एवं सप्ततिः मैं जो यावत्पद आया है उससे 'भगवन्तं तित्थयरं तिक्खुत्तो आग्राहिणपयाहिणं करेइ, करेता बंदइ, णर्मसह, वंदित्ता नर्मसित्ता पच्चासण्णे नाईदूरे सुस्सूसमाणे, नर्मसमाणे अभिमुहे विषएणं पंजलिउडे' इस पाठ का ग्रहण हुआ है इन पदों का अर्थ स्पष्ठ है वहां आकर के उसने प्रभुकी पर्युपासना की 'एवं अवसिहा वि इंदा भाfotoai' इसी तरह अर्थात् सौधर्मेन्द्र के सम्बन्ध में कथित रीती के अनुसार वैमानिक देवों के अवशिष्ट इन्द्र भी आये ऐसा कहलेना चाहिये ! और ये इन्द्र यहां अच्युतेन्द्र तक के आए। यह अच्युतेन्द्र ११-१२ वें कल्प का अधिपति है । 'इमं णानन्तं चउरासीह, असीइ बावन्तरि सत्तरी अणसट्ठीअ पण्णा चत्तालीसा तीसा वीसा दससहस्सा बत्तीसहावीसा वारसह चउरो सयसहस्सा, पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सारे' इन गाथाओं द्वारा किन २ इन्द्रों के कितने सामाजिक देव एवं कितने विमान हैं यह प्रकट किया गया है - सौधर्मेन्द्र के ८४ हजार सामानिक देव हैं ईशान के ८० हजार सामानिक देव हैं ७२ हजार सामाजिक देव सनत्कुमारेन्द्र के हैं ७० हजार सामानिक देव माहेन्द्र मावेस छे. 'समोसरिओ जाव' भां ने यावत् युद्ध ड्यु छे तेनाथी 'भगवंतं तित्थयर' तिक्खुतो कायाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ, णमंसई, वंदित्ता नर्मसित्ता णच्चासणे नाइदूरे सुस्सूसमाणे, णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे' मा पाठ ग्रहण हरायो छे. थे यहोनो अर्थ स्पष्ट छे. त्यां भावाने तेथे अनी पर्युपासना . ' एवं अवसिट्ठा वि इंदा भाणियश्वा' आ अभा अर्थात् सौधर्मेन्द्रना समंधभां प्रथित रीति भुम्म વૈમાનિક દેવાતા અવશિષ્ટ ઈન્દ્રો પણ આવ્યા, ચોવું હૅહી લેવું જોઇએ. અને એ ઇન્દ્રો પણ અહીં અચ્યુતેન્દ્ર સુધીના અહી' આન્યા, આ અચ્યુતેન્દ્ર ૧૧-૧૨માં કલ્પના અધિપતિ छे. 'इमं णाणत्तं-चउरासीइ, असीइ बावन्तरी अण्णसट्ठीअ पण्णा चत्तालीसा तीसा वीसा दससहस्सा बत्तीसट्ठावीसा बारसदृ चउरो सयसहरसा, पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सारे ' આ ગાથાએ વડે કયા-કયા ઈન્દ્રોને કેટલાં સામાનિક દેવા તેમજ કેટલાં વિમાને છે? એ પ્રકટ કરવામાં આવ્યુ છે. સૌધર્મેન્દ્રના ૮૪ હજાર સામાનિક દેવા છે. ઈશાનને ૮૦ "
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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