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________________ प्रकाशिका टीका-पंञ्चमवक्षस्कारः सू. ४ इन्द्रकृत्यावसरनिरूपणम् ६११ पन्ति अस्येहि मघवान् 'पागसासणे' पाकशासनः पाको नामासुरः तस्य शासक इत्यर्थः दहिणद्धलोकाहिबई' दक्षिणार्द्धलोकधिपतिः, 'वत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई' द्वात्रिंरात् विमानावासशतसहस्राधिपतिः द्वात्रिंशल्लक्ष संख्यकविमानावासाधिपतिरित्यर्थः स्वामीतिभावः ‘एरावणवाहणे' ऐगवतवाहनः तन्नामको हस्तिविशेषः वाहनं यस्य स तथाभूतः 'सुरिंदे' सुरेन्द्रः, सुराणां देवानां स्वामी तथा 'अरयंवरवत्थधरे' अरजोऽम्बरवस्त्रधरः प्रांशुरहितनिर्मलस्त्रधरः तथा 'आलइयमालमउले' आलगितमालमुकुट:-यथास्थान स्थापित माल्यमुकुटः 'नवहेमचारुचित्तचञ्चलकुण्डलविलिह्यमानगण्ड:-नवहेमनिर्मितनवीनसुवर्णनिर्मित यत् चारु सुन्दर चित्तवत् चञ्चलं दोलायमानं कुण्डलद्वयं तेन विलिह्यमानः स्पृश्यमानी गण्डः कपोलो यस्य स तथाभूतः 'विलिहिज्जमाण' विलिख्यमानो गण्डो यस्य स कारण यह है कि इसके ५०० मित्र है अतः उनकी दो दो आखों की अपेक्षा लेकर यह सहस्त्राक्ष कह दिया गया है। यह मघ-मेघों का यह स्वामी है इसलिये इसे मघवान कहा गया है । पाकशासन-इसने पाक नामके असुर को शिक्षा दी है इसलिये इसका नाम पाकशासन हो गया है। यह दक्षिणार्धलोक का अधि. पति होता है ३२ लाख विमान इसके अधिकार में रहते हैं ऐरावत हाथी इसकी सवारी के काममें आता है सुरेन्द्र सुरों का यह स्वामी होता है यह पांशु रहित निर्मल वस्त्र पहिनता है-इसलिये अरजोऽम्बर वस्त्रधर इसे कहा गया है। 'आलइय मालमउडे' यथास्थान जिस पर मालाएं रखी हुई रहती हैं ऐसे मुकट को यह मस्तक पर धारण किये रहता है 'नवहेमचारचित्तंचचलकण्डल विलिहिज्जमाणगंडे' ये जिन दो कुण्डलों को कान में पहिनता है वे नबीन हेम सुवर्ण से निर्मित हुए होते हैं इसलिये बडे सुन्दर होते हैं और चित्त के समान वे चञ्चल होते रहते हैं इसी कारण दोनों गाल इसके उनसे रगडते रहते हैं આ કારણથી કે આને ૫૦૦ મિત્ર છે. એથી તેમની બે-બે આંખની અપેક્ષાએ આને સહસાક્ષ કહેવામાં આવે છે. આ મઘ-મેઘને સ્વામી છે એથી એને મઘવાન કહેવામાં આવે છે. પાકશાસન–આ ઈન્દ્ર પાક નામક અસુરને શિક્ષા આપી હતી એથી એનું નામ પાકશાસન થઈ ગયું. આ દક્ષિણાર્ધ લેકને અધિપતિ હોય છે. ૩૨ લાખ વિમાને એના અધિકારમાં રહે છે. સુરેન્દ્ર અને એટલા માટે કહેવામાં આવે છે કે આ સુરેનો સ્વામી છે. આ પાંશુ રહિત નિર્મળ વસ્ત્ર પહેરે છે. એથી આને અરઅર વસ્ત્રધર કહેવામાં भाव छ. 'अलिइय मालमउडे' यथा स्थान नी ५२ भागामी भूपाय छे सेवा भटन मा भरत ५२ ५.२ ४री २ छ. 'नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाण રહે એ જે બે કુંડને કાનેમાં પહેરે છે. તે કુંડળે નવીન હેમ સુવર્ણથી નિમિત હોય છે, એથી તે કુંડળ અતીવ સુંદર લાગે છે. તે કુંડળે ચિત્તની જેમ ચંચળ થતા रहेछ. मेथी र सेना भन्न गासात पाथी घसाता २ छे. 'भासुरबोंदी' भन
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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