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________________ ४९८ जम्बूद्वीपप्रमतिले 'वाहल्लेणं' वाहल्येन उच्चत्वेन 'पण्णत्ते' प्रज्ञसम्, एतेन भद्रशालयनं नन्दनवनं सौमनसवनमन्तरद्वयं चैतानि सर्वाणि मन्दरपर्वतस्य मध्यमकाण्डेऽन्तर्भवन्ति, ननु द्वितीयकाण्डविभागस्य समवायाङ्गसूत्रस्याष्टत्रिंशत्तमसमवायेऽष्टत्रिंशत्सहस्रयोजनोच्छ्रितत्वेन वर्णितत्वात्रिपष्टियो. जनसहस्रोच्चत्वं कथं सगच्छते ? इति चेत्, अत्रोच्यते-समवायागोक्तोच्चत्वस्य मतान्तरावलम्घनमूलकत्वात्प्रकृतोच्चत्वे न वाधकतेति । एवम् ‘उवरिल्ले पुच्छा' उपरितले काण्डे पृच्छा प्रश्नपद्धतिरूहनीया, तत्प्रश्नोत्तरमाह-'गोयमा ! गौतम ! 'छत्तीसं' पत्रिंशतं 'जोयणसहस्साई' योजनसह त्राणि 'वाहल्लेणं' वाहत्येन 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम् 'एवामेव' एवमेव-पूर्वोक्त. रीत्यैत्र 'सपुवावरेणं' सपूर्वापरेण-पूर्व संख्यानसहितापरसंख्यानेन सङ्कलितेन समा 'मंदरे' मन्दरः 'पञ्चए' पर्वतः 'एगं' एक 'जोयणसयसहस्स' योजनशतसहस्र 'समगेग' सर्वाग्रेण प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! तेवहि जोयणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते' हे गौतम ! मध्यम काण्ड की ऊंचाई ६३ हजार योजन की कही गई है इस कथन से 'भद्रशालचन नन्दनवन, सौमनसवन और दो अन्तर ये सब मन्दर पर्वत के मध्यम काण्ड में अन्तर्भूत है' यह बात समझनी चाहिये। शंका-समवायाङ्ग सूत्र के ३८ वें समवाय में इस द्वितीय काण्ड ल्पविभाग को ३८ हजार योजन की ऊंचाई वाला कहा गया है फिर आपका यह ६३ हजार की ऊंचाई वाला कथन कैसे संगत हो सकता है ? तो इसका उत्तर ऐसा है कि वहां जो ऐसा कहा गया है वह मतान्तर की अपेक्षा से कहा गया है अतः वह कथन इस कथन का बाधक नहीं हो सकता 'उवरिल्ले पुच्छा' हे भदन्त उपरितन काण्ड की ऊंचाई कितनी कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा ! छत्तीसं जोयणसहस्साई वाहल्लेणं पण्णत्ते' हे गौतम! उपरितनकाण्ड की ऊंचाई ३६ हजार योजन की कही गई है 'एचामेव सपुवावरेणं मंदरे पच्चए तेवष्टि जोयणसहम्साई वाहल्लेणं पण्णत्ते' हे गौतम! मध्यम isी १३ 8२ જન જેટલી કહેવામાં આવેલી છે. આ કથનથી ભદ્રશાલવન, નંદનવન, સોમનસવન, અને બે અન્ડર એ બધા મન્દર પર્વતના મધ્યકાંડમાં અન્તર્ભત થઈ જાય છે. શંકાસમવાયાંગ સૂત્રના ૩૮મા સમવાયમાં એ દ્વિતીય કાંડ રૂપ વિભાગને ૩૮ હજાર જન જેટલી ઊંચાઈવાળો કહેવામાં આવેલ છે, તે પછી અહીં ૬૩ હજાર જેટલી ઊંચાઈનું કથન કેવી રીતે ચોગ્ય કહેવાશે? આને જવાબ આ પ્રમાણે છે કે ત્યાં જે આ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, તે મતાન્તરની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવેલું છે. એથી ते ४थन २॥ ४यनk मा नथी 'उबरिल्ले पुच्छा मत ! 6रतन ४3नी या ४क्षी धडपामा मानी छ ? साना वाममा प्रमुछे-'गोयमा ! छत्तीस जोयणसहस्साई चाहल्लेणं पण्णत्ते' गौतम ! परितन नी या 38 m२ योन सी ४डपामा भावना छे. 'एवामेव सपुब्बावरेणं मंदरे पञ्चए एगं जोयणसयसहस्सं सव्वगेणं पण्णचे' मा
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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