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________________ प्रकाशिका टीका चतुर्थवक्षस्कारः सु० ३ तत्र स्थित भवनादिवर्णनम् पद्मरूपपरिवेष्टनैः 'सम्वओ' सर्वतः सर्वदिक्षु 'समता' समतात् सर्वविदिक्षु 'संपरिक्खि'ते' संपरिक्षिप्तं परिवेष्टितम् 'तं जहा' तद्यथा - 'अभितरणं मज्झिमएणं वाहिरएणं' आभ्यन्तरकेण १ मध्यम केन २ वाद्यकेन३ । 'अभितरए पउमपरिक्खेवे बत्तीसं पउमरायसाहसीओ पण्णत्ताओ' ताभ्यन्तरकं पद्मपरिक्षेपे द्वात्रिंशत् पद्मशतसाहस्त्र्यः कमललक्षाणि प्रज्ञप्ताः, 'मज्झिमए' मध्यमके मध्य मे 'पउमपरिक्खेवे ? पापरिक्षेपे 'चत्तालीसं परमस्य साहसीओ पण्णत्ताओ' चत्वारिंशत् पद्मशतसाहस्त्रयः प्रजप्ताः' 'चाहिए' वालके वाद्ये 'पउमपरिक्खेवे' पद्मपरिक्षेपे 'अडयालीसं' चाष्टचत्वारिंशत् 'पउममयसाहस्सीओ' पद्मशतसाहस्त्र्यः - कमललक्षाणि' पण्णत्ताओ' प्रप्ताः इदं च पदमपरिक्षेपत्रयमाभियोगिकदेव सम्बन्धिवोध्यम् । अत्र भिन्न पद्मपरिक्षेपत्रयख्यापनं तेषां भिन्न भिन्न कार्यकारित्वात् । अथ परिक्षेपत्रिकस्य पद्ममर्वाग्रमाह - 'एवमेव ' इत्यादि । 'एवामेव ' एवमेव उक्तरीत्या 'सपूव्वारेणं' सपूर्वापरंण-पूर्वेण सहितः, अवरः सपूर्वापरस्तेन पौर्वापर्यमाश्रित्य स्थितैरित्यर्थः, ‘तिर्हि’ त्रिभिः ‘पउमपरिवखवेहिं' पद्मपरिक्षेपैः कृत्या 'एगा पउमकोडी' एका पद्मकोटी पद्म इन कथित पद्म परिक्षेपों से चारों ओर से घिरा हुआ है । (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं - ( अभितर केणं, मज्जमणं पाहणं) एक आभ्यन्तरिक पद्म परिक्षेष, दूसरा मध्यमक पद्म परिक्षेप और तीसरा वाघ पद्मपरिक्षेप इनमें जो (अभितर पउमपरिक्खेवे बत्तीमं पउम समसाहस्सीओ पण्णत्ताओ) आभ्यन्तरिक पद्मपरिक्षेष हैं उस में ३२ लाख पद्म है ( मज्झिमए पउम परिक्खेवे चत्तालोमं परममयसादस्सीओ पण्णत्ताओ) मध्यमक जो पद्मपरिक्षेप है उस में ४० लाख पद्म है (बाहिरए पमपरिक्खेवे अडयालीसं परमसयसाहसीओ पण्णत्ताओ) तथा जो बाह्य पद्मपरिक्षेप है उस में ४८ लाख पद्म है । यह पद्म परिक्षेप आभियोगिक देव संबन्धी है यहां जो इसे भिन्नरूप से कहा गया है वह उन्हें भिन्न भिन्न कार्यकारी होने से कहा गया है । ( एवामेव संपरिक्तियते' को भूग पद्म मे थित या परिक्षेयो सिवाय मीन्न पत्र पद्म परिक्षेपोथी थामेर घेरायेस छे. 'तं जहा' ने आ प्रभाये छे. 'अभितरकेणं, मज्झिमरण बाहिरएण" પ્રથમ આભ્યંતરિક પદ્મ પરિક્ષેપ બીજું નાધ્યમિક પદ્મ પરિક્ષેપ અને તૃતીય ખાદ્ય પદ્મ પરિક્ષેપ ये सर्वमां ने 'अभितरए परमपरिक्खेवे बत्तीसं पउमसयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ' भाल्यांत२ि४ पद्म परिक्षेष छे तेभां उ२ साथ यो छे, 'मज्झिमए परमपरिक्खेवे चत्तालीसं पउमसय साहसीओ पण्णत्ताओ' मध्य ने पद्म परिक्षेय तेभां व्यासीस साथ पझो छे. 'बाहिरए पउमपरिक्खेिवे अडयालीसं पउम सयसाहस्सीओ प०' तेभन ने माहा यद्म परिक्षेप छे. तेभां ૪૮ લાખ પડ્યો છે. એ પદ્મ પરિક્ષેપ ત્રય આભિચાગિક દેવ સમધી છે. અહી જે આને ભિન્ન રૂપમા ક્ડવામાં આવેલ છે તેનુ કારણ આ પ્રમાણે છે કે તેઓ ભિન્ન—ભિન્ન हार्यद्वारी होवाथी तेभ एडेस छे, 'एवामेव सपुव्वावरेण तिहिं पउमपरिक्खेवेहिं एगा परम ३१
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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