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________________ ३७० जम्बूद्वीपप्रचलित - मेकशैलनामकं वक्षरकारशैलं वर्णयिनुलपक्रमते- 'कहि णं एगसेले' इत्यादि-उत्तानार्थम्, अयं पुष्कलावतः सप्तमो विजयश्चक्रवति विजेतव्यत्वेन चक्रवर्तिविजय इत्युच्यते, एवं पुष्कलावती चक्रवर्तिविजयोऽपि मध्यमपदलोपि तत्पुरुपसमास युक्तो वोध्या, अथाष्टमं चक्रवर्तिविजय भदन्त ! महाविदेह क्षेत्र में पुरकलावत नाम का विजय कहां पर कहा गया है ? (गोयमा ! णीलवनस्ल दाहिजेणं लीयाए उत्तरेण पंकावईए पुरथिमेणं एक सेलस्स धक्खारपध्वयस्थ पच्चरिथमेणं एस्थ णं पुक्खलावंतो णामं विजए पण्णत्ते) हे गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत की दक्षिण दिशा में सीता महानदी की उत्तर दिशा में एवं पत्रावती महानदी की पूर्व दिशा में तथा एकौल नाम के वक्षस्कार पर्वत की पश्चिम दिशा में महाविदेह क्षेत्र के भीतर पुष्कलावन पर्वत नाम का विजय कहा गया है ___(जहा कच्छरिजए तहा भाणिय) जैसा वर्णन कच्छविजय का है उसी प्रकार का वर्णन इसका ली है (जाच पुक्खले अ इत्थ देवे महिडिए पलिओचमहिइए परिवलह) यावत् यहां पर पुष्कल नाम का एक देव जो कि महद्धिक अरौ एक पल्योपस की स्थिति वाला है रहता है इसी कारण मैने हे गौतम ! इसका नाम पुष्कलविजय कहा है। (कहिणं संते! महाविदेहे वाले एगसेले नामं वक्खारपच्चए पणते) हे भदन्त ! महाविदेह क्षेत्र में एकौल नाम का 'वक्षस्कार पर्वत कहाँ पर कहा गया है ? उत्तर में मधु दाहते हैं (गोयमा ! पुका लाचचकवद्विविजयस्ता पुररिथमेणं पोश्खलावती चक्कवष्टिविजयरस पच्च. नही र ४ छे. 'कहिणं भले महादिदे वासे पुक्खलातत्ते णाम विजए पण्णत्ते' में ME | महाविड क्षेत्रमा पुसावत' नाम विय ४या स्थणे मावेश छ ? 'गोगमा ! णीलवंतस्स दाहिणेणं सीआए उत्तरेणं पंकावईए पुरस्थिमेणं । कोलम्म बक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं एत्थणं पुक्खलाक्त्ते णामं विजए पण्णत्ते गौतम ! नीसन १६२ यतिनी દક્ષિણ દિશામાં સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં તેમજ પંકાવતી મહાનદીની પૂર્વ દિશામાં તથા એક નામક વક્ષરકાર પર્વતની પશ્ચિમ દિશામાં મહાદેહ ક્ષેત્રની २ Y०४सावत' नामे पिय मावस . 'जहा कच्छविजए तहा भ.णियव्व' रे वन २७ वियनु छ ते १ न भनु ५५ ७.-'जाब पुक्खलेश इत्यदेवे महिढिए पलिओवमद्विइए परिखसई' यावत्त मही नामे महद्धि गते ४ यापम જેટલી સ્થિતિવાળે દેવ રહે છે. એથી જ મેં હે ગૌતમ! એનું નામ પુષ્કલ વિજય मे राभ्यु छे. 'कहिणं भंते महाविदेहे वासे एगसेले नामं वक्खारपत्रए पण्णत्ते' ७ ભદંત ! મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં એકશલ નામક વક્ષરકાર પર્વત કયા સ્થળે આવેલ છે ? रामभ प्रभु ४३ छ-'गोयमा । पुनकलावट्टचक्करट्टिविजयस्स पुरत्पिमेणं पाक्खलावता चकवट्टिविजयस्स पच्चत्थिमेणं णीलवंतस्स दक्षिणेणं सीआए उत्तरेणं एत्थणं एगसेले णाम बक्खारपव्वए पण्णत्ते' हे गौतम ! Y४ात यती विशयनी पूर्व दिशामा Yo
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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