SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २६ विभागमुखेन कच्छविजयनिरूपणम् ३५ वित्थिण्णे' प्राचीन प्रतीचीनविस्तीर्ण:-पूर्वपश्चिमयोदिशोविस्तारयुक्तः, तथा 'पलियंकसंठाणसंठिए' पल्यङ्कसंस्थानसंस्थित:-पर्यङ्काकारेण संस्थितः, आयतचतुरस्रत्वात्, 'गंगा-सिंधूहि' गङ्गा-सिन्धुभ्याम् 'महाणईहि' महानदीभ्याम् 'वेयर्तण य' वैताढयेन च-वैताब्य-नामकेन चे 'पचएण' पर्वतेन 'छब्भागपविभत्तः' षड्भागप्रविभक्ता-पभि भांगैः प्रविभक्त:-पडूधा खण्डितः एवमन्येऽपि विजया भावनीयाः, परन्तु सीताया उदीचीनाः कच्छादयः शीतोदाया दाक्षिणात्याः पक्ष्मादयो गङ्गा सिन्धुभ्यां पडधा विभक्ता', सीताया दाक्षिणात्या चच्छादयः शीतोदाया उदीचीना वप्रादयो रक्तारक्तवतीभ्यां पडघा विभक्ता इति उत्तरदक्षिणायतेति 'विशदयति 'सोलस' इत्यादि 'सोलस' षोडश 'जोयणसहस्साई' योजनसहस्राणि 'पंच य' पञ्च च 'वाणउए' द्विनवतानि-द्विनवत्यधिकानि 'जोयणसए' योजनशतानि 'जोयणस्स' योजनस्य 'दोण्णि य द्वौ च 'एग्रणवीसइमाए' एकोनविंशतिभागौ 'आयामेणं' आयामेनउत्तर दक्षिण दिशा में लंबा है 'पाईणपईणवित्थिपणे' पूर्वपश्चिम दिशा में विस्तृत है तथा 'पलियंकसंठाणसंठिए' पर्यङ्काकार से स्थित है, लबा एवं चौकोण होने से । 'गंगासिंधूहि' गंगा एवं सिंधु नामकी 'महाणईहिं' महानदी से तथा 'वेयडेण य' वैतादय नाम के 'पन्चएण' पर्वत से 'छन्भागपविभत्ते' छ भाग मे विभक्त होता है। इसी प्रकार अन्य विजयों के संबंध में भी समझ लेवें। परंत सीता महानदी की उत्तर दिशा में कच्छादि विजय शीतोदा की दक्षिण दिशा के पक्ष्मादि गंगा एवं सिंधु महानदी के द्वारा छ प्रकार से विभक्त होता है। सीता महानदी की दक्षिण ओर के वच्छादि तथा शीतोदा की उत्तर दिशा में वप्रादि रक्त एवं रक्तवती नदी के द्वारा छ प्रकार से विभक्त होता है। ___ अब उत्तर दक्षिण की दीर्घता को स्पष्ट करते हैं-'सोलसजोयणसहस्साई, सोलह हजार योजन 'पंचय वाणउए' जोयणसए' पांचसो विरानवें अर्थात १६५९२२ जोयणस्स' एक योजन के 'दोणिय' दो 'एगूणवीसइ भागे' उन्नीसवां छ. 'पाईणपईणवित्थिण्णे' पूर्व पश्चिम दिशामा विस्तृत छ. तथा 'पलियंकसंठाणसहित पय ४२ री स्थित . सांभु भने यतुण्डा डावाथी 'गंगासिंधूहि ॥ मन सि नामनी 'महोणई हिं' महानहीथी तथा 'वेयइढेणय' वताय नामना 'पव्वएणं' यतथी 'छम्भागविभत्ते' छ सालमा मास थाय छे. २मा Na मी विन्याना समयमा सभा લેવું, પરંત સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં કચ્છાદિ વિજય શીતાદાની દક્ષિણ દિશાના પફમાદિ ગંગા અને સિંધુ મહાનદી દ્વારા છ પ્રકારથી અલગ થાય છે. સીતા મહાનદીની દક્ષિણ તરફના વચ્છાદિ તથા શીતેદાની ઉત્તર દિશામાં વપ્રાદિ રક્ત અને રક્તવતી નદી દ્વારા છ ભાગમાં અલગ થાય છે. • उत्तर दक्षिानी मा २५७८ ४२ छ-'सोलस जोयणसहरसाई' से हुनर योर पंचय वाणउए' पांयसे। मा 'जोयगस्स' मे४ 201ना 'दोण्णिय' में 'एगूणवीसई
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy