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________________ ३०६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 'दसवण्णं' दशार्द्धवर्ण-पञ्चवर्ण-कृष्णनीललोहितहारिद्रशुक्लवर्णमिति यावत् 'कुसुम' कुसुम पुष्पं 'कुसुमेति' कुसुमयन्ति कुसुमं जनयन्ति, अत्र कुमुमशव्दाजनि धात्वर्थे णिच् 'जे' ये 'ण' ।। खलु गुल्माः तं-प्रसिद्धं भूमिभागमित्यग्रिमेण सम्बन्धः, 'मालवंतस्स' माल्यवतः-माल्यवनामकस्य 'वक्खारपबयस्स' वक्षस्कारपर्वतस्य 'बहुसमरमणिज्ज' बहुसमरमणीयम्-अत्यन्तसमतलमत एव रमणीयं मनोहरं 'भूमिभाग' भूमिभागं 'वायविधुयग्गसाला मुक्कपुप्फपुंनोरयारकलियं' वातविधुताग्रशालामुक्तपुष्पपुञ्जोपचारकलित-बातेन-वायुना विधुताग्राविधुतं-कम्पितमग्रम्-उपरिभागो यस्याः सा तथाभूता या शाला-शाखा तप्त्या मुक्तो यः पुष्पपुञ्जः-पुष्पसमूहः स एवोपचार:-शोभासामग्री तेन कलितं-युक्तं 'करेंति' कर्वन्ति ततः 'मालवंते' माल्यवान् माल्यं-पुष्पमाल्यं पुष्यं वा नित्यमस्त्यस्येति माल्यवान-माल्यवन्नामकः 'य' च 'इत्थ' अत्र-अस्मिन् माल्यवति वक्षस्कारपर्वते देव:-अधिष्ठाता परिवसतीत्यग्रेतनेन सम्बन्धः, स च कीदृशः ? इत्याह-'महद्धिए जाव पलिओवमट्टिइए' महर्चिको यावत् पल्योपमस्थितिकः-महर्दिक इत्यारभ्य पल्योपयस्थितिक इति पर्यन्तानां तद्विशेषणवाचकपदानामत्र यावत्पदेन सङ्ग्रहो वोध्या, स च सार्थोऽष्टमसूत्राद्वोध्यः । तेन तघो. लिया गुम्मा' नवमालिका नामकी पुष्पलता विशेष के 'समूह जाव' यावतू 'मगदतिया गुम्मा' मगदंतिका नामक पुष्पलता के समूह हैं। 'तेणं गुम्मा' वे समूह 'दसद्धवणं' कृष्ण नील लोहित हारिद्र एवं शुक्ल ऐसा पांच वर्ण वाले 'कुसुमं कुसुमें ति' पुष्पों को उत्पन्न करते हैं। 'जे गं' जो वल्ली समूह 'मालवंतस्स' माल्यवान् नामके 'वक्खारपव्वयस्स' वक्षस्कार पर्वत के 'बहुसमरमणिज्ज' अत्यन्त समतल होने से रमणीय भूमिभार्ग' भूमि भाग के वायविधुयग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलियं वायु के द्वारा कंपित अग्रभाग वाली शाखाओं से गिरे हुए पुष्प समूह रूपी शोभा सामग्री से युक्त 'करें ति' करते हैं। तथा 'मालवंते' माल्यवान् नाम का देव 'य इत्थ' यहां पर निवास करते हैं यह सम्बन्ध आगे कहा जायगा वह देव कैसा है ? सो कहते हैं-'महद्धीए जाव पलिओवमट्टिइए' महर्द्धिक से ‘णोमालिया गुम्मा' नव भाति नामनी युध्यक्षता विशेषता समूह 'जाव' यावत् 'माग दंतिया गुम्मा' मा ति नामनी ०५सताना समूह छ. 'तेणं गुम्मा' से समूह 'दस. द्धवणं' , ना, ति, R, भने शुंद अभ पांय गवाणा 'कुसुमं कुसुमेति' पुण्याने उत्पन्न ४२ छे. 'जे णं'२ ता समूह 'मालवंतस्स' मास्यवान् नामना 'वक्खारपव्वयस्स' पक्षा२ पतिना 'बहुसमरमणिज्ज' सत्यत समतवडापाथी रमणीय मेवा 'भूमिमार्ग' भूमिमागत वायविधुयग्गसाला मुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिय' वनथा ४पायभान समाजवाणा शापामाथी मा १०५ समा ३पी शामाथी युत 'करेति' ४२ छ. तथा 'मालवते' माल्यवान् नाभना हे 'इत्थ' त्या निवास ४२ छ. से सम्मन्य मागण डिपामा मावशे तवा छे? ते ४९ छ 'महडीए जाव पलिओवमदिइए' मा યાત અક પાપમની સ્થિતિવાળા છે. અહી યાં મહદ્ધિક પદથી લઈને પલ્યોપમના SMARTIAL 34 'अन्य महाद्वीप जाब पल्लियोवान
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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