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जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे इत्याह-'एगं' एकं 'जोयणसहम्स' योजनसहस्रम् 'उद्धं' उर्ध्वम् 'उच्चत्तेणं' उच्चत्वेन अवशिष्टमायामविष्कम्भादिकम् 'जमगपमाणेणं' यमकप्रमाणेन-यमकनामकपर्वतप्रमाणेन 'णेय, नेतव्य-बोधपथं प्रापणीयं-बोध्यम् तथाहि-'अद्धाइजाइ जोयणसयाई उव्वेहेणं मूले एग जोयणसहस्सं आयाम विक्खंभेणं' एतच्छाया-अर्द्धवतीयानि योजनशतानि उधेन मुले एक योजनसहस्रम् आयामविष्कम्भेण, पाख्या चास्य सुगमा, इत्यादि यमकपर्वतप्रमाणेनास्योवैधादि बोध्यम्, अस्य हरिस्सहकूटस्याधिपतेरन्य राजधानीतो दिक्प्रमाणाधैर्विशेपो राजधान्यामिति तां राजधानीवक्तुकाम आह-'रायहाणी' राजधानी अग्रे वक्ष्यमाणा हरिस्सहामि धाना 'उत्तरेणं' उत्तरेण-उत्तरस्यां दिशि, एतदेव विशदयति-'असंखेज्जे' असंख्येयान्संख्यातमशक्यान् 'दीवे' द्वीपान् अस्याग्रेतनेन "अवगाह्य" इत्यनेन सम्बन्धः, इदमुपलक्षम्तेन "मंदरस्स पन्चयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जाई दीवसमुदाई वीईवइत्ता" इदं ग्राह्यम्, है। 'एग जोयणसहस्सं' वह एक हजार योजन 'उद्धं' ऊपर की ओर 'उच्चत्तर्ण' ऊंचा है। शेष आयाम विष्कंभादिक 'जमगपमाणेणं जमक नाम के पर्वत के आयाम विष्कंभ के समान 'णेय,' जान लेवें। जो इस प्रकार से है-'अद्धाइज्जाई जोयणसयाई उज्वेहेणं मूले एगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेणं' ढाईसो योजन का उसका उद्वेध है, मूल में एक हजार योजन इसका आयाम विष्कंभ कहा है । इत्यादि समग्र कथन यमक पर्वत के कथनानुसार समझ लेवें ।
इस हरिस्सहकूट केअधिपति की राजधानी के कथन में अन्य राजधानी से दिप्रमाणादि से विशेषता है अतः उस राजधानी का कथन करते हैं-रायहाणी इसकी राजधानी हरिस्सहा नामकी 'उत्तरेणं' इत्तर दिशा में 'असंखेज्जे असंख्यात 'दीवो' द्वीपों को 'अवगाहन करके' ऐसा आगे सम्बन्ध आता है यह द्वीप पदउपलक्षण है अतः 'मंदरस्स पन्धयस्त उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जाई दीवसमुद्दाई वीईवइत्ता' यह पाठ ग्रहण होता है ? मन्दर पर्वत की उत्तर दिशा में दूट 'पण्णत्तं' डस छे. 'एगं जोयणसहस्सं सेट मे 8M२ यो । 'उद्ध' ५२नी मानु 'उच्चत्तेण' या छ. माडीनु मायाम Go विगेरे 'जमगपमाणेण' यम नामना - तन मायाम मिनी सरभु 'णेयव्व' सम देव. २ मा प्रभाथे छे-'अद्ध इज्जाई जोयणसयाई उन्चेहेणं मूले एगं जोयणसहसं आयामविखंभेण' मढिसा योन शो તેને ઉધ છે. વિગેરે તમામ કથન યમક પર્વતના કથનાનુસાર સમજી લેવું. રાજધાનીના કથનમાં આ હરિસ્સહ કુટના અધિપતિની અન્ય રાજધાનીથી દિફ પ્રમાણુદિથી વિશેષપણું छ. तेथी से राधानानु ४थन ४२वामां आवे छे.-'रायहाणी' सनी धानी रिसह मामनी 'उत्तरेण' उत्तर दिशामा 'असंखेज्जे मस यात 'दीवे द्वापान माहित शर से प्रभार मा समय मावे छ. २॥ दी५ ५६ SARY छे. तेथी 'मंदरस पत्रय