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________________ जम्बूहीपप्रशप्तिसूत्र यथा-'सिद्धाययणकूडे ०' सिद्धायतनकूटम्० इत्यादीनि नवकूटानि यारत् इति तानि नवकूतानि नामनिर्देशेनाह-'सिद्धेय सिद्धं च इत्यादि स्पष्टम् नवरम उत्तररात्रे उक्तस्यापि सिद्धायतनकूटस्य पुनरुपादानं गाथानिवद्धत्वेन सर्वकूटसङ्ग्रहार्थमिति, सिद्धं-सिद्धायतनकूटम् नामैकदेशे नामग्रहणात्, च शब्दः पादपूरणार्थकः१, 'मालयंते' माल्यरत्-माल्यवन्नामकं कूटम् प्रस्तुतवक्षस्कारप्रतिकूटम् २, 'उत्तरकुरु' उत्तरकुरुनामकं कूटम्-उत्तरकुरुदेवकूटं ३, 'कच्छसागरे' कच्छसागरे-कच्छं कच्छविजयाधिपं कटं सागरं च सागरनामकं कृटम्४-५, 'रयए' रजतं-रजतनामकं कूटम् इदश्चान्यत्र रुचकनाम्ना प्रसिद्धम् ६, 'सीयाए' सीतायाः सीतानद्याः सूर्याः कुटम् क्वचित् 'सीओयेति' पाठः तत्पक्षे सीते चेतिच्छाया, सीताकूटमिति पण्णत्ता' यावत् हे गौतम ! नव कूट कहे है इस कथन पर्यन्त पूर्वोक्त कथन ग्रहण करलेवें । 'तं जहा' वे नवकूट इस प्रकार से कहे हैं-'सिद्धाययणकडे' सिद्धायतन कूट, इत्यादि नवकूट कहे हैं । अब वे नव कूटों के पृथक् पृथक् नाम निर्देश दिखलाते हैं-'सिद्धया' सिद्ध इत्यादि स्पष्ट है । विशेषता यह है कि यह सिद्ध कूट उत्तर सूत्र में कहने पर भी सिद्धायतन कूटका पुनरुच्चारण गाथा में सर्व कूटों के नाम संग्रहार्थ कहा है ऐसा समझलेवें । गाथा में 'सिद्ध' कहनेसे सिद्धायतन कूट ऐसा समझलेना चाहिए, कारण कि नामका एकदेश के कहनेसे संपूर्ण नाम ग्रहण होजाता है १, 'मालवंते' माल्यवान नामका कूट यह प्रस्तुत वक्षस्कारका प्रतिकूट है २, 'उत्तरकुरू उत्तरकुरु नामका कूट यह उत्तरकुरु देव का कूट है ३, 'कच्छसागरे' कच्छ नाम का कूट ४ तथा सागर नाम का कूट ५, 'रयए' रजत नाम का कूट यह अन्य स्थान में रुचक नामसे प्रसिद्ध है ६, 'सीयाए सीता नदी का सूर्य कूट हैं, कहीं पर 'सीयोएति' ऐसा पाठ है, इस पक्ष में 'सीता जाव गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता' यावत् गौतम ! नटी डेसा छ. मा ४थन पर्यन्त पूर्वरित ४थन डाय ४री त जहा' ते नव दूटो मा प्रभारी छ. 'सिद्धाययणकूडे' સિદ્ધાયતન ફૂટ ઈત્યાદિ નવ ફૂટે છે. वसन टनु दु नाम निशपूर्व४ मताव छ-'सिद्धेय' सिद्ध त्या ગાથાર્થ સ્પષ્ટ છે. વિશેષતા એ છે કે–આ સિદ્ધ કૂટ ઉત્તર સૂત્રમાં કહેવા છતાં પણ સિદ્ધાથતન કૃટનું પુનરચ્ચારણ ગાથામાં સર્વ ટેના નામને સંગ્રહ બતાવવા માટે કહેલ છે. तभ सम . गाथामा 'सिद्ध' वाथी सिद्धायतन दूट मेम सम नध्य. १२ -नामना से देशन ४उपाथी सपू नामनु प्रड २४ लय छ १ 'मालवते' भास्यवान् नामना कूट से प्रस्तुत क्षार प्रतिट छ. २ 'उत्तरकुरु' उत्त२७३ नामना दूट मा उत्त२ १३ नामना वना छूट छ 3 'कच्छसागरे ४२७ नामना छूट ४ तथा सागर नाभनाइट ५ 'रयए' २०४त नामना छूट भादूट अन्य स्थानमा ३५४ नामथी प्रसिद्ध ७.६ 'सीयाए' सीता नहीना सूर्य दूर छ. ४यां४ 'सीयोएत्ति' मेवी 48 छ, मे पक्षमा 'सीता
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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