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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजन्यर्णनमें अधुना सुदर्शनाशब्दप्रवृत्तिनिमित्तं प्रष्ठुकाम इदमाह-'जंबूए ' इत्यादि-'जंबूए णं' अट्ट मंगलगा पण्णत्ता' जम्ब्बाः खलु अष्टाष्ट मंगलकानि 'से' अथ-सुदर्शनास्वरूपवर्णनानन्तरम् 'भंते !' हे भदन्त ! इयं जिज्ञासोदेति यत् 'केणटेणं' केन अर्थेन-कारणेन 'एवं' एवम्इत्थम् 'वुच्चई' उच्यते-कथ्यते–'जंबू सुदंसणा २?' जम्बूः सुदर्शना २ इति ?, भगवांस्तदुत्तरमाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जंबूए णं सुदंसणाए अणाढिए' जम्ब्वां खलु सुदर्शनायाम् अनाहतः-नादृताः-न सम्मानिताः स्वातिरिक्ता जम्बूद्वीपनिवासिनो देवा येन सोऽनाहत:उपेक्षितान्यमहर्द्धिकः अनाहतेत्यन्वर्थनामको ‘णाम' नाम-प्रसिद्धो 'जंबूदीवाहिवई' जम्बू. द्वीपाधिपतिः 'परिवसइ' परिवसति, स कीदृशः ? इति जिज्ञासायामाह-'महिद्धीए' महद्धिकः-महती भवनपरिवारादि समृद्धिर्यस्य स तथा, इदमुपलक्षणं तेन "महाद्युतिकः, ८। ये आठ मंगलक ही कल्याण करने वाले कहे हैं । यहां मंगल जनकों में मंगलत्व यह औपचारिक है यह उपलक्षण है अतः यहां ध्वज छत्रादिका भी वर्णन करलेना चाहिए। अब सुदर्शना शब्द की प्रवृत्ति के निमित्त को लेकर पूछने की इच्छा से इस प्रकार कहते हैं-'जंबू सुदर्शना में आठ आठ मंगल द्रव्य कहे हैं 'से' सुदर्शना के स्वरूप वर्णन के पीछे 'भंते !' हे भगवन् इस प्रकार की जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि-केणटेणं एवं वुच्चई' किस कारण से इस प्रकार कहा जाता है कि 'जंबू सुदंसणा जंबू सुदंसणा' यह जंबूसुदर्शना इस प्रकार से कहा जाता है? इस प्रश्न के उत्तर निमित्त महावीर प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! . 'जंबूएणं सुदंसणाए' जंबूसुदर्शना में 'अणाढिए णाम' अनाहत नामधारी देव 'जंबू दीवाहिवई' 'जंबुद्धीप का अधिपति 'परिवसई' निवास करता है। वह कैसा है इस प्रकार की जिज्ञासा निवृत्यर्थ कहते हैं-'महिड्डीए' भवनपरिवारा આ આઠ મંગલક જ કલ્યાણ કરનારા કહ્યા છે. અહીં મંગલ જનકમાં મંગલત્વ એ ઔપચારિક છે. એ ઉપલક્ષણ છે. તેથી અહી ધવજ અને છત્રાદિનું વર્ણન પણ કરી લેવું. હવે સુદર્શન શબ્દની પ્રવૃત્તિના નિમિત્તને લઈને પૂછવાની ઈચ્છાથી આ પ્રમાણે ४डस छ.-'जंवूएणं अटु मरलगा पण्णत्ता' भूसुशानामा मा6 2416 भर द्रव्य 'से' सुशनाना १३५ १ ननी पछी 'भंते !' 3 भगवन् मावी शतना शास. Gua थाय छ -'केणद्वेणं एवं वुच्चई' । रणथी या शते ४पामां आवे छे ४-जंवसांसणी -जंवूसुदसणा' मा सुशना मे प्रमाण ४ाय छ ? २मा प्रश्न उत्तरमा श्रीमहावीर प्रमुछे-'गोयमा! गौतम । जंबूएणं सुंदसणाए' भू सुशानाभा 'अणाढिए णामं मनात नामधारी हेव, 'जंबू दीवाहिवई' दी५ नाभना द्वीपन मधिपति 'परिवसई निवास है, ते व वा १ शतनी ज्ञानी निवृत्ति भाटे ४३ छ–'महिड्डीए' सपन परिवारा સમૃદ્ધિથી યુક્ત હોવાથી મહદ્ધિક છે. મહદ્ધિક પદ ઉપલક્ષણ છે, તેથી મહાદ્યુતિવાળા,
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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