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________________ २०० जम्बुद्वीपप्राप्तिसूत्र टीका-'कहि णं भंते ! यमगाणां देवाणं' इत्यादि 'कहि णं भंते ! यमगाणं देवाणं जमिगाओ गयहाणिओ पण्णत्तायो' वर खल भदन्त ! यमकयो:-यमक नामकयोः देवयोः यमिके नाम राजधान्यौ प्रज्ञप्ने !, भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'अंधीवे दीवे मंदरस्स' जग्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य-मन्दरनायकस्य 'पव्ययस्स उत्तरेणं' पर्वनम्स उत्तरेणउत्तरस्यां दिशि 'अण्णमि' अन्यस्मिन्-अपरहिमन 'जंवृद्दीवे दीये चारस जोयणसहस्साई। जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वादश योजनसहस्राणि-द्वाद गसहस्रयोजनानि 'ओगाहित्ता' अवगाद्य-प्रविश्य 'एत्य णं' अत्र-अत्रान्तरे खलु 'जमगाणं देवाणं जमिगाओ रायहाणिो पण्णताओ' यमकयोदेवयोथमिके राजधान्यौ प्रज्ञप्ते, तयोगियाह-'वारस जोयण सहस्साई' द्वादश योजनसहस्राणि-द्वादशसहस्त्रयोजनानि 'आयामविवखंभेणं 'सत्ततीसं जोयणसहस्साइ' सप्तत्रिंशतं अब यमका राजधानी का प्रश्नोतर बारा वर्णन करते हैं-'कहिणं भंते ! जमगाणं देवाणं' इत्यादि टीकार्थ-'कहिणं भंते ! जमगाणं देवाणं जमिगाओ रायहाणिओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! यमक नामधारी देवकी यमिका नामकी राजधानी कहां पर कही गइ है ? गौतमस्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान कहते हैं-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जंबहीवे दीवे' जंबुदीप नाम के डीपमें 'मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं' 'मंदर पर्वत की उत्तर दिशामें 'अण्णमि' दूसरे 'जंबूढीवे दीवे वारस जोयण सहस्साई' जंढीप नामके द्वीपमें चारह हजार योजन'ओगाहिता' अवगाहना करने पर-जानेपर 'एस्थ णं' यहां पर 'जमगाणं देवार्ण जमिगाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ' यमक देवकी यामिका नाम वाली दो राजधानी कही गई है। अब उनका प्रमाण-विस्तार कहते हैं'चारस जोयणसहस्साई' बारह हजार योजन 'आयाम विक्खंभेणं' इनका हवे यम यानी प्रश्नोत्तर वा। १एन ४२वाभा मावे छे. 'कहिणं भंते ! जमगाणं देवाणं' त्यादि टी-'कहिणं भंते ! जमगाणं देवाणं जमिगाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ' 3 सगवन યમક નામના દેવની યમિકા નામની રાજધાની કયાં આવેલ છે? ગૌતમસ્વામીના આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ . 'गोयमा ! गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे.' ही नामना द्वीपमा 'मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं' मह२ पतनी तर हशमा 'अण्णंमि' मा 'जंवूदीवे दीवे वारस जोयण महस्साई' दीप नामन द्वीपमा पार M२ यान 'ओगाहित्तो' माना ४२पाथी अर्थात् पाथी 'एस्थणं' त्या भागण 'जमगाणं देवाणं जमिगाओ रायहाणीओ पण्णत्ताओ' यम हेवनी यमि नामनी मे. धानाय ४ामा मावेल छे. હવે તેનું પ્રમાણ વિસ્તાર કહે છે. 'वारस जोयणसहस्साई' मा२ १२ योन-आयामविक्खंभेणं तेना भायाम वि०४
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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