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आवश्यकमूत्रस्य मैदाः, तर हस्तकर्मकरण प्रथमम् (१) अतिक्रमव्यतिक्रमातिचारैमथुनसेवन द्वितीयम् , (२) रात्रिभोजन उतीयम् (३) आधार्मसेवन चतुर्थम् (४), राजपिण्ड-(नृपतिमुद्दिश्य निष्पादित) ग्रहण पञ्चमम् (५), द्रव्यादिना साथै क्रीतमुद्धारगृहीतमनिच्छतः पुनभृत्यादेईस्तादपहत्याऽन्यसम्बन्धिसाधारणाऽऽहारादिक ताननापृच्छय स्वकीयमपि स्वस्थानादपहत्य या साधवे दीयमान मित्येपा पश्चाना पिण्डाना सेवन पष्ठम् (६), पुनः पुनः प्रत्याख्यानभञ्जन सप्तमम् (७), पण्मासाभ्यन्तरे स्वगच्छान्निःसृत्य गच्छान्तरगमनमष्टमम् (८), मासाभ्यन्तर उदकरयलेपसेवन नवमम् (९) मासाभ्यन्तरे मावस्थानत्रयसेवन दश उन्हें 'शबल' कहते है, वे इक्कीस (२१) हैं-(१) हस्तकर्म करना (२) अतिक्रम व्यतिक्रम और अतिचार से मैयुन सेवन करना, (३) रात्रि भोजन करना, (४) आधाकर्मी आहार आदिका सेवन करना, (५) राजपिण्ड लेना (६) 'कीय' (क्रीत)-साधु के निमित्त खरीदे हुए, 'पामिचे' (प्रामित्य) उधार लिये हुए, 'अच्छिन' (अच्छेद्य)-पुत्र भृत्य आदि के हाथ से छीने हुए, 'अणिसिह' (अनिसृष्ट)=अनेक के हिस्से का आहार आदि उनसे विना पूछे दिये हुए, तथा 'आहह दिजमाण' (आहृत्य दीयमान) स्वस्थान से सामने लाकर दिये हुए, आहार
आदि का सेवन करना, (७) प्रत्याख्यान का बारम्बार भग करना, (८) छह महीने से पहले अपना गच्छ छोड कर दूसरे गच्छ म जाना, (९) एक महीनेमे तीन बार उदक का लेप लगाना (नदी કહે છે તે એકવીશ પ્રકારના છે (૧) હસ્તકર્મ કરવું, (૨) અતિક્રમ, વ્યતિક્રમ અને અતિચારથી મિથુન સેવન કરવુ (૩) રાત્રિ-ભૂજન કરવું, (૪) આધાકમાં मासा२ पगेरेनु सेवन ४२५, (५) पिंड ए ४.यो (६) 'कीय' (क्रीत) साधुना निमित्त गरी ४२सा, 'पामिचे' (पामित्य) Gधार दीर्घा, 'अच्छिज' (अच्छेच) पुत्र-ना४२ मा यमाथी छानवी सीसा, 'अणिसिद्ध' ( अनिसृष्ट) અનેક માણસોના ભાગને આહાર વગેરે તેઓને પૂછયા વિના આપેલા તથા 'आट्ट दिजमाण' (आहृत्य दीयमानम् ) पोताना स्थानयी सामा मापीन दावी આપેલા આહાર આદિનું સેવન કરવું, (૭) પ્રત્યાખ્યાનને વાર વાર ભગ કરવો, (૮) છ માસ પૂર્વે પોતાને ગચ્છ ત્યછ બીજા ગચ્છમાં જવું, (૯) એક મહિનામાં