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(१०) सेलाना - ता. २९-११-३६ का पत्र, शास्त्रों के ज्ञाता श्रीमान्
रतनलालजी डोसी.
(११) खीचन - ता. ९ - ११ - ३६ को पत्र, पडितरत्न न्यायतीर्थ सुश्रावक श्रीयुत् माधवलालजी
ता २५-११-३६
सादर जय जिनेन्द्र
आपका भेजा हुवा उपासक दशाग सूत्र तथा पत्र मिला यहां विराजित प्रवर्तक वयोवृद्ध श्री १००८ श्री ताराचदजी महाराज पण्डित श्री किशनलालजी महाराज आदि ठाणा १४ शुख शांती में विराजमान हैं आपके वहां विराजित जैनशास्त्राचार्य पूज्यपाद श्री १००८ श्री घासीलालजी महाराज आदि ठाणा नव से हमारी बन्दना अर्ज कर सुख शांति पूछे आपने उपासकदशाग सूत्र के विषय मे यहा विराजित मुनिवरों की सम्मती मगाई उसके विषय में वक्ता श्री सोभागमलजी महाराज ने फरमाया है कि वर्तमान में स्थानकवासी समाज में अनेकानेक विद्वान मुनि महाराज मौजूद हैं मगर जैनशास्त्र की वृत्ति रचने का साहस जैसा घासीलालजी महाराज ने किया है वैसा अन्य ने किया हो ऐसा नजर नही आता दूसरा यह शास्त्र अत्यन्त उपयोगी तो यों हैं संस्कृत प्राकृत हिन्दी और गुजराती भाषा होने से चारों मापा वाले एक ही पुस्तक से लाभ उठा सकते हैं जैन समाज में ऐसे विद्वानों का गौरव बढे यही शुभ कामना है आशा है कि स्थानकवासी सघ विद्वानों की कदर करना सीखेगा ।
योग्य लिखें शेष शुभ
भवदीय
जमनालाल रामलाल कीमती
आगरा से -
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श्री जैनदिवाकर प्रसिद्ध वक्ता जगद्ववल्लभ मुनि श्री चोथमलजी महाराज व पडितरत्न सुव्याख्यानी गणीजी श्री प्यारचन्द जी महारज ने इस पुस्तक को अतीव पसन्द की है ।