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मुनितोपणी टीका वाहयोग्यक्षेत्रादिनिरीक्षणविपया, (२) वालग्लानादियोग्यसस्तारकादिव्यवस्थाकरणविषया, (३) यथाकाल स्वाध्यायाधनुष्ठानविषया, (४) यथायोग्यविनयविपया चेति । आसामष्टविधसम्पदा विस्तरतो व्यारया मकृद्दशाश्रुतस्कन्धमत्रस्य टीकाया विलोकनीया ।
एत एवोक्तलक्षणा आचार्याः (१) प्रवचनप्रभावकोपदेश-(२)वादाधिकरणकगावतिकजय-(३) निमिचज्ञान-(४) तपस्वित्वा-(५)ऽजनसिद्धि-(६) लब्धिसिद्धि(७) कर्मसिद्धि-(८) विद्यासिद्धि-(९) मन्त्रसिद्धि--(१०) योगसिद्वया-(११) ऽऽगमसिद्धि-(१२) युक्तिसिद्धय-(१३) ऽभिपायसिद्धि-(१४) गुणसिद्ध(१५) ऽर्थसिद्धि-(१६) कर्मक्षयसिद्धि-रूपैविशिष्टैः पोडगभिर्गुणैरप्युपलक्षिता
वृद्ध आदि मुनियोंके निर्वाहयोग्य क्षेत्र आदिका निरीक्षण करना, (२) बाल-ग्लान आदिके योग्य शय्या-सथारा आदि की व्यवस्था करना, (३) यथाकाल स्वाध्याय आदि करना, (४) यथायोग्य बडों का वन्दन आदि विनय करना।
ये ही उक्तगुणसम्पन्न आचार्य जय-(१) प्रवचनप्रभावक उपदेश देना, (२) वादमें मदा जय, (३) निमित्तज्ञान, (४) तपस्या, (५) अवनसिद्धि, (६) लब्धिमिद्धि, (७) कर्ममिद्वि, (८) विद्यासिद्धि, (९) मन्त्रसिद्धि, (१०) योगसिद्धि, (११) आगमसिद्धि, (१२) युक्तिसिद्धि, (१३) अभिप्रायसिद्धि, (१४) गुणसिद्धि, (१५) अर्थसिद्धि, (१६) कर्मक्षयसिद्धि, इन सोलह विशेप गुणों से युक्त होते हैं तय
મુનિન નિર્વાહ એગ્ય ક્ષેત્ર આદિને તપાસ કરે, (૨) બાલ, દ્વાન આદિના યેગ્ય શા સારા આદિની વ્યવસ્થા કરવી, (૩) યથાસમય સ્વાધ્યાય આદિ કરવા (૪) મોટા હોય તેને યોગ્ય વિનય અને વદનાદિ કરવું
ઉપર પ્રમાણે કહેલા ગુણથી પૂર્ણ હોય તેવા આચાર્ય જ્યારે (૧) પ્રવચન પ્રભાવક ઉપદેશ આપે છે (૨) વાદમાં વિજય મેળવે છે, (૩) નિમિત્તજ્ઞાન, (४) तपस्या, (५) Arela, (6) allAa, (७) भसिद्धि, (८) विधासिद्धि, (6) भत्रसिद्धि, (१०) योगसिदि, (११) मामासाद, (१०) युतिसिद्धि (13) मक्षिप्रायसिद्धि, (१४) शुशुमिति, (१५) मसिद्धि (१६) भक्षयसिद्धि આ મેળ વિશેષ ગુણેથી યુકત હોય છે ત્યારે તે “યુગપ્રધાનાચાર્ય