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________________ ३० राजप्रश्नीयसूत्रे याबद्-गृहीतायुधमहरणैः साद्ध सम्परितः सकोरण्टमाल्यदाम्ना छत्रेण प्रियमाणेन महाभट वटकररथ पह करबन्दपरिक्षितः स्वाद् गृहाद निगच्छति, श्वेतविकाया नगर्या मध्यमध्येन निर्गच्छति, सुखैः वासैः प्रातराशः नातिविकृष्टः अन्तरावासैः वसन् वसन् केकयाई स्य जनपदस्य मध्यमध्येन यत्रत्र कुणाला जनपदो यत्र व श्रावस्ती नगरी तव उपागच्छति, श्रावस्त्यां चाउग्जट' आसरह दुरूहेइ) लेकर जहां वह चातुर्घट अश्वस्थ तैयार खडा था वहां पर आया-वहां आकरके फिर वह रथ पर चढ़ा (बहहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं सद्धिं संपरिधुढे सकोरिटमल्लदामेण छत्रेण धरिजमाणेण महया भडचडगररहपगकरविंदपरिवखो साओ गिहाओ णिग्गच्छइ) तब सन्नद्ध यावत् गृहीत आयुध प्रहरणवाले ऐसे अनेक पुरुषों से घिर गया, छत्रधारी द्वारा ध्रियमाण एवं कोटपुष्पमाला से विभूपित ऐसा छत्र उसके ऊपर तान दिया गया, महाभटों के विस्तृत समूह के वृन्दने उसे आकर घेर लिया. इस प्रकार की परिस्थिति से युक्त हुआ वह अपने घर से निकला (सेयवियाए णयरीए मज्झमज्झेग णिग्गच्छइ) और निकलकर वह श्वेतविका नगरी के बीचो. बीच से होकर चला-(मुहेहि वासे हि पयरासेहि नाइविकिटेहि अंतरावासेहि वसमाणे२ केइयद्धस्स जणवयस्स मज्झमज्झेणजेणेव कुणाला जणवए जेणेत्र सावत्थी नयरी तेणेत्र उबागच्छद) इस प्रकार घर से निकला हुआ वह सुखकर रात्रिनिवासों से, प्रातःकालिकलघु भोजनों से-कलेवाओं से, तथा अतिदूर के नहीं ऐसे अन्तरावानों से पडावों से-मध्याह्नकालिक विश्रामस्थानों से जगह२ ठहरता२ केकयाई जनपद के मध्य मध्य से होता हुआ सवार थये. (बहुहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध जाव गहियाउहपहरणेहिं सद्धि संपरिघुडे सकोरिटमल्लदामेण छत्तेण धरेज्जमाणेण महया-भडचडगररहपगकरविंद परिक्वित्ते साओ गिहाओ जिग्गच्छद) न्यारे सन्नद्ध यावत् मना छायामा આયુ છે એવા અને પુરુથી પરિવેષ્ટિત થઈને તથા કેરંટ પુષ્પમાળાથી વિભૂષિત અને છત્રધારી વડે ધારણ કરેલું છત્ર તેની ઉપર તાણવામાં આવ્યું ત્યારે તેને મહાભટોના વિશાલ સમૂહ વૃદ્ધે આવીને પ્રવિષ્ટ કરી લીધો. આમ તે પિતાના ઘરથી २वाना था. (सु हेहिं वासेहिं पयरासे हि नाइ विकिहिं अंतरावासेहि वलमाणे २ के इयद्धस्स जणवयस्स मज्झमज्झेणं जेणेव कुणाला जणवए जेणेच सावत्थी नयरी तेणे उत्रागच्छा) मा प्रमाणे ३२थी २वाना थs ते सुम४२ त्रिनिवास, प्रातः કાલિક લઘુભેજને, અતિ દૂર નહિ એટલે કે નજીકનજીકના અન્તરાવાસે (મુકામે) મધ્યાન્ડકાલિક વિશ્રામ અને સ્થાન રથાન પર મુકામ કરતા તે કેકયાદ્ધ જનપદની
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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