________________
गजप्रश्नोयसूत्रे एवं खलु गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये इव जम्द्वीपे-द्वीपे भारते वर्षे के कयाद्र नाम जनपद आसीत् ऋद्रस्तिमितसमृद्धः। तत्र ख केहया जनपदे श्वेतविका नाम नगरी आसीत, ऋद्धस्तिमितममृद्धा यात्रन प्रतिस्या। तेग कालेण तेण सम एण इहेब जंबहीवे दीवे भारहे दास्ले के यादे नामे जणयए होत्था) है लम ! में इस विषय में तुम से कहताह मो तुम. 3 से मुनो-बात ऐमा है-इस अवसर्पिणीकाल के चतुर्थ आरकरूपकाल में और कशि वामी के निकरण के समय में इस जम्बूद्वीप नामके मध्य नम्बट्टीप में भरतक्षेत्र में ककयाई नामका जनपद-देश था. तात्पर्य कहने का यह : है कि के कायदे का आधाभाग आयजनों का निवासस्थानरूप था और. आधाभाग अनार्य जनों का निवाला धानरूप था. उस तरह आर्य अनार्य के निवास्थानभृत होने से केकर देश को यहां आधे आधेरूप में पृथक पृथकू जनपद कहा गया है (रिस्थिनिय समिद्धा जाव पडिरूवा) यह केकयाई ऋद्धनभम्तलम्पर्शी अनेक भवनादिकों से युक्त था, एवं बहुजन संकुल था, .. स्तिमित-स्वचक्र परचक्र के भय से रहित था, एवं समृद्र-धनधान्यादि से परिपूर्ण था बावत प्रतिरूप था (नत्यणं के यइअद्धे जणवर से यत्रिया णामं णयरी होत्या) उम्म केहयाद्ध जनपद में श्वेतविका नामकी नगरी थी. (रिस्थिनियसमिद्धा जाव पडिरूवा) यह नगरी भी ऋद्ध. स्तिमित और समृद्ध श्री. एवं प्रतिरूप-सर्वोत्तम श्री (ती से णं से यावियाए नयरीए बहिया प्रमाणे ह्यु-(एवं खलु गोयमा। तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जद्दीवे दीवे भारहे चासे अद्रं नामे जणवा होत्था) गौतम ! २मा विषेरे ४७ तमने. કહું તે તમે સંભળે. વિગત આ પ્રમાણે છે કે-આ અવસર્પિણી કાળના ચેથા આરકરૂપ કાળમાં અને કેશિસ્વામીના વિહરણના સમયમાં આ જંબુદ્વિપ નામના મધ્ય જંબુઢાપમાં લ.રતક્ષેત્રમાં કયા નામે જનપદ-દેશ-હતો તાત્પર્ય એ છે કે કેક દેશના અર્ધા ભાગમાં આર્યજન નિવાસ કરતાં હતા અને અર્ધા ભાગમાં અનાર્યજને રહેતા હતાં. એથી જ આર્યો અનાર્યોના નિવાસસ્થાનરૂપ તે કેકયપ્રદેશને અહીં અર્ધા ३५i jel odel oraपहोना नामे साधित ४२वामा माये। छ. (रिस्थिमियसमिद्धा जात्र पडिरूवा) मा ४या हे नमस्तपशीgi aqणेથી યુકત હતો, અને બહુજન સંકુલ હવે, સ્વિમિત–સ્વચક્રે પરચકની બીકથી રહિત हत अने. समृद्ध बनधान्य वगेरेथी परिपूर्ण हुतो यारत् प्रति३५ ता. (तत्थण " केयइअझै जणवए से यविया णाम णयरी होत्था) याद्ध पहभां श्वेतवि
नामै नगरी ती. (रिद्धस्थिमियसमिद्धा जाब, पडिरूवा) PAL नगरी पY * · तिभित मने समृद्ध हुती.. मने प्रति३५-सर्वोत्तम ती..(तीसे, सेयवियाए