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सुयोधिनो; टोकाः ९९ सुर्याभदेवस्य ऋद्धिविषये भगवदुत्तरम् . केय इअद्धे जणयए से यवियाणामं नयरा होत्था, रिद्धस्थिलियसमिद्धा जाव पडिरूवा। तीसे णं सेवियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थणं मिगवणे णामं उजाणे होत्था सव्वोउप पुफफलसमिद्धे रम्मे नंदणंवणपगासे सायलाए सुभसुरभिसीय. लाए छायाए सव्वओचेव समणुबके पासाईए जाव पडिरूवे । तत्य णं सेयवियाए णगरीए पएसी णामं राया होत्था, महया हिमवंत जाव विहरइ । अधम्मिए अधम्मिट्टै अधम्मक्खाई अधम्माणुए अधम्मपलोई अधम्मपजणणे अधम्मसीलसमुयायारे अधम्मेण चेव विन्ति कप्पेमाणे 'हणछिदुभिंद'-पवत्तए लोहियपाणी पावे चंडे रुदै खुद्दे साहसिए उकंचण-वंचण-माया-नियडि-कूड-कवड-लाइ संप
ओगबहूले निस्सीले निव्वए निग्गुणे निम्मेरे निपच्चरखाणपोसहो. ववासे बहूणं दुप्पयचउप्पयमियपसुपपरखीसिरिसवाणघायाए वहाए - उच्छेयणयाएः अधग्मकेऊ समट्टिए, गुरूणं णो अब्भुढेइ, णो विणयं पउंजइ, सयस्स वि यणं. जणवयस्स णो सम्मं करभरवित्ति पर्वतेइासू९९॥
... छाया- गौतम ! इति श्रमशो भगवान महावीरो भगवत गौतमम् आमन्त्रय एवमवादीत्--- .. .. 'गोयमाई' समणे भगत्र महावीरे भगव' गोयम' आमतेचा' इत्यादि ।
सूत्रार्थ- (गोयमाइ समणे भगव महावीरे भगवं गोयम आमंतेशा एवं वयासी) हे गौतम ! इस प्रकार से श्रमण भगवान् महावीरने भगवान् गौतम को संबोधित कर के इस प्रकार कहा-(एवं खलु गोयमा !
'गोयमाई' समणे भगव महावीरे भगवं गोयम आम तेत्ता' इत्यादि ।
। सूत्रार्थ:-(गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं . वयासी) गौतम ! PAL प्रभारी गौतमने समाधित ४शन मापाने तेने से