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________________ सुबोधिनी टीका स. १७५ सूर्याभिदेवस्व आगासिभव निम् ४४७ टीका - "सेव सते" इत्यादि - हे भदन्त । यद् भवद्भिरुक्तं तत् एवम्इत्थम्, वास्तविकमिति यावत् देवं भदन्त ? इति विप्सा भगवद्वचने श्रद्धातिशय प्रकटयति, इति-अनेन प्रकारेण उवच्चा भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमः य यदि वन्दित्वा नमस्त्विा संयसेन उपसा आत्मानं भावयमानो विहरतीति ॥ सू० १७६॥ श्री अथ गजप्रश्रीयसूत्र य प्रशस्तिःगुर्जराभिधदेशेऽरिमन् पुरं वीरमगामकम् । आरण-श्राव श्रेणिसौधमण्डि - वीथिकम् ग्रामाद् ग्रामान्तरं पङ्किः साधुभिर्विहरन्निह । निर्वोढुं सांसीं यात्रां परुद्वैशाख आगमम् ॥ २ ॥ ॥ १ ॥ 'सेवं भंते ? सेवं संते ?" भगवं योगमे - " इत्यादिमूलार्थ – 'सेव भंते ? सेव अंते ? ' हे भदन्त ? जैसा आपने कहा है वह वैसा ही है, अर्थात् - आपने जो अपनी दिव्यध्वनि द्वारा प्रकट किया है वह वास्तविक ही है सर्वथा सत्य ही है । इस प्रकार कहकर - "भगव ं गोसे - " भगवान् गौतमने "सम भगव वदइ नमसड़ - " श्रमण भगवान् को वन्दना की गुण' तुति की, और उन्हें नमस्कार किया- " वंदित्ता नमसित्ता संजमेण तपसा अप्पाणं भावेमाणे विहरड़ - " वन्दना नमस्कार वर फिरवे संयम से और तप से आत्मा को भावित करते हुवे अपने स्थान पर विराजमान हो गये । टीर्थ-स्पष्ट है- 'सेव सते ? सेव सते ?" ऐन जो दो बार कहा गया है वह भगवद्वचन में श्रद्धातिशय प्रगट करने के लिये कहा गया है. । ०१७६ 'सेवं भंते ? सवं भंते ? भगवं गोयमे इत्यादि । भवार्थ - " से भंते ! रोन भंते !" हे महंत ! नेप्रमाणे आपश्री से છે તે તેમજ છે એટલે કે આપશ્રીએ પેાતાની દિવ્યધ્વનિદ્વારા જે કંઈ કહ્યું છે તે वास्तवि४ छे. सर्वथा सत्य हे प्रमाणे उडीने "भगव' गोयमे" लगवान गौतमे समणं भगवं वद नम सड़" श्रमण भगवानने वहना पुरी; गुणु स्तुति डरी अने तेभने नमस्कार : “वंदित्ता नमसित्ता संज्मेणं तपसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह" વદના તેમજ નમસ્કાર કરીને તેએ સંયમ અને તપશ્રી આત્માને ભાવિત કરતાં પેાતાના સ્થાને બિરાજમાન થઈ ગયા. टीडार्थ स्पष्ट छे. "सेव' अंते । सेवं भंते !" सास આવ્યુ છે તે ભગવદ વચનમાં અતિ શ્રદ્ઘા પ્રગટ કરવા માટે मे वयत उडेवामां છે. ॥ ૧૭૬ ॥
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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