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________________ ३६४ ग़जप्रश्नीयमुत्रे . मूलम्--तए णं से पएसी राया कलं जाव तेयसा जलंते सेयावि पामोक्खाइं सत्त गामसहस्साइं चत्तारि भाए कीरइ, एगं भागं वलवाहणस्स दलइ जाव कूडागारसालं करेइ, तत्थ णं बहू हिं पुरिसे हिं जाव उवक्खडावेत्ता बहणं समण० जाव परिभाएमाणे विहग्इ । तए णं से पएसी राया समणोवालए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ, जप्पभिई च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिई च णं रज च रटं च वलं च वाहणं च कोसं च कोटागारं च पुरं च अंतेउरच जणवयं च अणाढायमाणे यावि विहरइ । ॥ सू० १६१ ॥ छाया-ततः रनलु स प्रदेशी राजा कल्यं यावत् तेजसा ज्वलति श्वेतांविकाप्रमुखानि सप्त ग्रामसहस्राणि चतुरो भागान् करोति, एक भाग बलवाहनाय ददाति यावत् कूटाऽऽकारशालां करोति, तत्र खलु बहुभिः पुरुपैः यावत् उपस्कार्य बहुभ्यः श्रमण० यावत् परिभाजयन् विहरति । "तए ण पएसी राया-" इत्यादि । सूत्रार्थ-"तएणं" इसके बाद "पएसी' राया कलं" प्रदेशी राजाने दूसरे ही दिन "जाव तेयसा जलंते." यावत् नेनसे सूर्य प्रकाशित होजाने पर "सेयविया पामेाकखाई सत्तगामसहस्साई च नारि भाए किरह-" श्वेताविका प्रमुख सातहजार ग्रामों को चार विभागो में विभाजित कर दिया. “एगे भागे बलवाहणस्स दलयइ" इनमें एक भाग वल वाहन के लिये वितरण करदिया. "जाव-कूडागार सालं करेइ-" यावत् चतु र्भाग कूटागारशाला का बनवाने के निमित्त दे दिया. "तत्थ ण बहूहिं पुरिसे हिं जाव-उवकूखडावेत्ता बहूण समण जाव परिभाए माणे विहरइ-" जव "तएणं पएसी गया' इत्यादि. ____.. सूत्रार्थ-'तएणं' त्या२ मा (पएसी राया कल्लं) प्रदेशी साये bilal हिवसे जाव तेयसा जलं ते' यावत तेथी न्यारे सूर्य प्रशित 25 गया त्यारे "सेयंविया पामोक्खाइं सत्तगामसहस्साई चत्तारि भाए कीरइ" तilist प्रभु सात १२ गाभाने या भागाभा पईया नाण्या. "एगे भागे वलवाहण स्स दलयइ” मामा : मास--पाउन माटे मा०ये "जाव कूडागासालं करेह" यावत् याथो मा टा॥२॥ मनावा भाट मा०या. "तर बहूहिं पुरिसेहिं जाव उववखडावेत्ता बहूण समण जाव परिभाएमाणे विहाइ”
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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