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सुबोधिनी टोका. १५२ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् . टीका-'तए णं से पएसी राया' इत्यादि-ततः खलु स प्रदेशी राजा केशिनं कुमारश्रमणम् एवमवादी-हे भदन्त ! स शरीराद्भिन्नः जीवा नूननिश्चयेन हस्तिनः कुन्थो:-त्रीन्द्रियक्षुद्रप्राणिविशेषस्य च समः-तुल्यपरिमाण एव न न्यूनाधिकपरिमाणः। इति प्रश्नः । केशी पाह-हन्त ! हे प्रदेशिन ! इसी तरह से हे प्रदेशिन् ! जीव भी पूर्व भवोपार्जित कर्मद्वारा निघद्ध जैसे शरीर को उत्पन्न-प्राप्त करता है (त असंखेज्जेहिं जीवपएसेहि सचित्त
करेह खुड्डिय वा महालिय. बा) चाहे वह छोटा हो या बडा उसे अपने .', असंख्यात प्रदेशों से सचित्त-जीव युक्त कर लिया करता है. (त सदहाहि.
ण तुमपएसी! जहा अण्णो जीवो त चेव ण १०) इसलिये हे प्रदेशिन्! तुम इस बात पर विश्वास करो कि जीव अन्य है और शरीर अन्य हैं इत्यादि।
टीकार्थ-इस मूलार्थ के ही अनुरूप है-परन्तु जो विशेषता है-बह इस प्रकार से है-कुन्थु वह तीन इन्द्रियों वालो-ते इन्द्रिय जीव है. और हाथी पांच इन्द्रियों वाला-पंचेन्द्रिय जीव है. जबकेशीकुमार श्रमणने १५१वे सूत्र में प्रदेशी से ऐसा कहा कि वायुकायिक जीव में और तुम्हारे जीव . में समानता है तो प्रदेशी के चित्त में ऐसी आशंका का उठना स्वभाविक
ही हैं कि कुन्थु के जीव में और हाथी के जीव में समानता है या असमानता है ? इसीलिये उसने ऐसा प्रश्न पूछा है. इसके समा. धान में केशीने उससे ऐसा कहा कि हे प्रदेशिन् ! जीव में चाहे वह लापतिमा निद्धशरीरन पन्न-प्रात ४२ छ. (त असखेज्जेहिं
जीवपएसेहि सचित्त करेइ खुड्यि वा महालिय वा) पछी म ते पछी - નાનું હોય કે મોટું–લઘુ હોય કે મહાન તેને પિતાના અસખ્યાત પ્રદેશથી સચિત્ત
वयुश्त से छ. (तं सहाहि णं तुम पएसी ! जहा अण्णोजीव त चेव ‘ण १०) मेटला भाटे महाशिन् ! तमे भारी मा वात पर विश्वास है
व मान्य छ भने शरीर मन्य छ. वगेरे ! " } ટીકાઈ_આ સૂત્રને ટીકાથે મૂલાથે પ્રમાણે જ છે. પણ સવિશેષ સ્પષ્ટતા
मी प्रमाणे छ-उथु-येण धन्द्रिया युत-ते छन्द्रिय छ. सने हाथी पांय ઈદ્રિ યુકત પચેન્દ્રિય જીવે છેજ્યારે કેશ કુમાર શ્રમણે ૧૫૧ મો સૂત્રમાં પ્રદશીને આ પ્રમાણે કહ્યું કે વાછુંકાયિક જીવમાં અને તમારા જીવમાં સમાનતા છે તે * પ્રદેશને ચિત્તમાં એવી આશંકા ઉદ્દભવે કે કુંથુના જીવમાં અને હાથીના જીવમાં समानता छ समानता ? को पात वालावि छ. मेटसा भोटे तेरेम। तन नयाँ छ: मेना समाधानमाशीम तने या प्रमाणे युं प्रशिन! ।
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