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________________ २७४ राजप्रश्नीयसूत्रे काष्ठ सर्वतः समन्ताद समभिलोकते, नो चैव खलु तत्र ज्योतिः पश्यति, ततः खलु स पुरुषः परिकर बध्नाति, गृह्णाति, तत् काष्ठे द्विधा स्फाटित करोति सर्वतः समन्तात् समभिलोकते नो चैव खलु तत्र ज्योतिः पश्यति, एवं यावत् संख्येयधा म्फाटित करोति सर्वतः समन्ताव समभिलोकते नो चैव खलु तत्र ज्योतिः पश्यति, ततः खलु स पुरुपः तस्मिन् काष्ठे द्विधा स्फाटिते वा यावत् संख्येगधा म्फाटिते वा ज्योतिरपश्यन् श्रान्तः तान्तः परितान्तः निर्विष्णाः सम पर. उबागच्छइ) इसके बाद वह पुरुष वहां गया जहां वह काष्ठ पडा हुआ था (उवागच्छित्ता तं कहूँ सनओ समंता सभिलोएइ) वहाँ जाकर के उसने उस काष्ठ को चारों ओर से अच्छी तरह से देखा (जो चेव णं जोइपासेइ) परन्तु उसमें उसे अग्नि दिखाई नहीं दी (तए णं से पुरिसे परियर' बंधड) तब उस पुरुषने अपनी कमर बांधी (फरसुगिण्हइ) कुल्लाडी उठाई और (त' को दुहा फालिह करेइ) उस काष्ठ के दो टूकडे कर दिये (सचओ समता समभिलोएइ) फिर उसे चारों ओर से अच्छी तरह से उसने देखा (णो चेव णं तत्थ जोड़' पासइ) परन्तु उसमें उसे अग्नि दिखाई नहीं दी (एव जाव संखेज्जहा फालिह करेइ) इसी प्रकार से फिर उसके यावत् संख्यात टुकडे तक कर दिये (सधओ समंता समभिलोएइ) परन्तु सब तरफ से अच्छी तरह देखने पर भी (णो चेव ण तत्थ जोइ पासइ) उसे उनमें अग्नि दिखाई नहीं दी (तए णं से पुरिसे नसि कहासि दुहा फालिए वा जाव संखेज्जहाफालिए वा जोई अपास त्यां गयेयां पे ४०४ (ख) ५यु तु. (उवागच्छित्ता त कट्ठ सनो समता समभिलोएड) त्यां धन तेरे ते साराने यारे माथी सारी शत आयु (णो चेव ण जोई पासेइ) पण तेभा तेने भनि हेमायो नहि. (एण से पुरिसे परियरं बंधह) त्यारे ते पुरुष पातानी मांधी. (फरसु गिण्डइ) मुछाडी हाथमा सीधी भने (त' क8 दुहा फालिह करेइ) ना मे ४४६ ४२री नाया. (मम्वी समता समभिलोएइ) पछी तेरे न्यारे तथा तेन न्यु: (णो चेव णं तत्थ जोई पासइ) ५ तभी तन मन लेवामां माव्य नहि. (एव जाव मखेज्जहा फालिह करेड) 24t प्रमाणे पछी तर तेना यावत् से 31 ४४ामा ४३॥ नाभ्या. (सव्यओ समता समभिलोएइ) ५ तमने सारे त२५ सारी शते लेवा छतांये (णो चेव तत्थ जोई पासइ) तमनामा मनि माया ना. (नएण से पुरिसे तामिछसि दुहा फालियं बा जाव सखेज्ज हा फालिए
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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