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मनोधिनी दोका. १४६ सूर्याभदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशिराजवर्णनम्
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शनः सांधयेः इति कृत्वा काष्ठानामटवीमनुप्रविष्टाः, ततः खलु स पुरुषः ततो मुन्तिरात् तेषां पुरुषाणामशन माधयामीति : कृत्वा यत्रैव ज्योतिर्भाजन तत्रैव उपागच्छति, ज्योतिर्भाजने ज्योतिर्विध्यातमेव पश्यति, ततः खलु स पुरुषः . यत्र व ततः : काष्ठ तत्र व उपागच्छति, उपागम्य, तद यहीं पर रह कर अग्नि के इस पात्र से अग्नि को लेकर हम लोगों के लिये भोजन तैयार करलो (अह ने जोइ भायणे जोई विझवेत्त) यदि उस पात्र में अग्नि बुझ जावे (एनो णं तुम कहाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेज़्जासि तिक कट्ठाण अडयिं अणुपविठ्ठा) तो देखो जो यह लकडी पडी है. सो इसमें से अग्नि को उत्पन्न कर लेना और हमलोगों के लिये भोजन बना लेना इस प्रकार कह कर वे उस इन्धन वाली अटवी में आगे प्रविष्ट हो गये (तएणं से पुरिसे तओ मुहत्त तराओ तेसिं पुरिसाण असणं माहेमित्ति कटु जेणेव जोइभायणे तेणेव उचागच्छड) उनके चले जाने पर उस पुरुषने ऐसा विचार किया-कि चलो जल्दी से उन लोगों के लिये भोजन तैयार करलू-ऐसा विचार करके वह जहां पर वह अग्नि का पात्र रखा था वहां पर गया (जोइभायणे जोई विज्झायमेव पासइ) वहां जाकर उसने उस ज्योतिपात्र में अग्नि को बुझा हुआ ही देखा. (नए णं से पुरिसे जेणेव से कहतेणे
गहाय अम्हं अमणं साहेज्जासि) त्या सुधी तमे मी' २७ीन भनिना २॥ पात्रमाथी मनिने स ममा। माटे मोशन तैयार ४२१. (अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेत्ता) ने 20 पात्रमा मनि मोवाs otय. (एत्तों ण तुम कहाओ जोई गहाय अम्ह असण साहेज्जारि त्ति कटु कठ्ठाण अडविं अणुपरिट्ठा) तो तुमी, PAL ५यु छ, तांथी मनि उत्पन्न ४० देने અને અમારા માટે ભેજન તૈયાર કરો. આ પ્રમાણે બધી વિગત સમજાવીને તેઓ ते ४५ ४ाजी मटवीमा माग प्रविष्ट था गया. (तएणं से पुरिसे तओं मुहत्ततराओ तेसि पुरिसाणं नामित्ति कटु जेणेव जोइभायणे तेणेव उवागच्छइ) तमो अधा न्यारे त्यांची तl Pा त्यारे तेणे 20 प्रमाणे વિચાર કર્યો કે-સારું જલ્દી તેઓ બધા માટે જમવાનું તૈયાર કરી લઉં. આમ विन्या२ ४0 ते न्यi AGन पात्र तु त्यां गया. (जोइभायणे जोई विज्झायमेव पोसइ) त्यां ने तेथे ते मनिपात्रमा मनिने माणा गयेस र नयो. त एण से पुरिसे जेणेव से कटे तेणेव उवागच्छइ) त्या२ पछी ते ५३५