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________________ रोजप्रश्नीयसूत्रे टीका-"तए णं पदसी इत्यादि-ततःखलु प्रदेशी राजा केशिकुमारश्रमणम् एवमवादीत्-एपा-इयम् उपमा प्रज्ञातः अस्ति अनेन वक्ष्यमाणेन पुनः कारणेन नो उपागच्छति-न संगच्छति, तदेवाऽऽह-एव खलु हे भदन्त ! स यथानामकः कश्चित् पुरुषः तरुणा: यावत्-यावत्पदेन-अनन्तरसूत्रे संगृहितानि युगवान् बलवानित्यादीनि पदानि संग्रहीतव्यानि, तदर्थश्च सप्तमसूत्रतो बोध्यः, निपुणशिल्पोपगतः-सम्यग्विज्ञानसंम्पन्नः, एतादृशः पुरुषः एक महान्त-विशालम् अयोभारकस्-लोभार पुकभारकं-धातुविशेषभार वा शीशकभारकं वा परिवोदु-नेतुं प्रभुः-समर्थः स्यात् ? इति प्रदेशिप्रश्न: - केशीश्रमणः कथयत्ति-हन्त ! हे राजन्! प्रभु-समर्थः स्यात् । हे अदन्त ! । भंते ! से चेत्र पुरिसे जुन्ने जाब किले नो पभू एग मह अयभार या जाव परिवहितए, तम्हा सुपहिया मे पडण्णा तहेव) जिस कारण से हे भदन्त ! वही पुरुष जीर्ण यावत् हो जाने पर एक विशाल लोहमारको यावत वहन करने के लिये समर्थ नहीं होता है-इस कारण से मेरा यह मन्तव्य जीव और शरीर के एक होने का सुप्रतिष्ठित है अर्थात् वहीं जीव और वही शरीर है, जीव भिन्न नहीं है और शरीर भिन्न नहीं है ऐसा मेरा मन्तव्य सत्य है। .. टीकार्थ--इस मूलार्थ के जैसा ही है. 'तरुणः यावत् लिपुणशिल्पोपगतः' में जो यह यावत्पद आया है. उससे अनन्तन सूत्र में संगृहीत युगवान बलवान् इत्यादि पद यहां गृहीत हुए हैं। इन पदों का अर्थ सप्तम । सूत्रकी टीका में लिखा जा चुका है, अतः वहीं से यह जानना चाहिये 'अयभारग (जम्हाणं भंते ! से चेब पुरिसे जुन्ने जाव. किलंते नो पभू. एग मह . अयभारं वा जाव परिवहितए, तम्हा सुपहिया मे पडण्णा तहेव) २. .. शुथी 3 Rk ! ते८ ५२५ यु (३२७) यावत् थ पाथी न्ये विशाmar ડના ભારને યાવતું વહન કરવામાં સમર્થ થઈ શકતો નથી તે કારણથી જ જીવ અને શરીર એકજ છે એવી મારી ધારણું સુપ્રતિષ્ઠિત જ છે. એટલે કે જીવ અને શરીર બને એકજ છે. જીવ ભિન્ન નથી અને શરીર ભિન નથી આ મારી માન્યતા ગ્યજ છે. टाथ-मा सूत्रन टी मृदा वा ४ छ. 'तरुणः यावत निपुणशिल्पो. - पगतमा २ यावत् १६ वे छ तेथी bile ०४२या-ये सहीत युगवान्, બળવાન વગેરે પદ અહીં સંગૃહીત થયાં છે. આ પદનો અર્થ સાતમા સૂત્રની * ટીકામાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યું છે. એથી ત્યાંથી જ જાણવા પ્રયત્ન કરે જઈએ.
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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