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राजप्रश्नीयसूत्रे
पगतः प्रभुः एक महान्तमयोभारकं वा त्रपुकमारक वा शीशकभारक वा परिवोदुम् ? हन्त प्रभुः। स एव खलु भदन्त ! पुरुपः जीण जराजर्जरितदेहः शिथिलवलितत्वचाविनष्टगानः दण्डपरिगृहीताग्रहस्तः अविरलपरिश टितदन्त श्रेणिः आतुरः कृशः पिपासितः दुर्बलः क्षुधापरिक्लान्तः नो प्रभुरेकं पाता है (अस्थि णं भंते ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसि प्पोचाए पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगंवा सीसगभारगं वा परिवहित्तए) वह कारण इस प्रकार से है-जैसे कोई एक पुरुष हो, और वह युवा यावत निघुगशिष्योपगत हो, अर्थात् सम्यग्ज्ञान सम्पन्न हो तो ऐसा वह पुरुष विशाल लोहे के भार को. त्रपुक के भार को शीशा के भार को वहन करने में समर्थ हो सकता है न ? तब के शीकुमारश्रमण ने उससे (इंता, पथू) हां, प्रदेशिन् ! ऐसा वह पुरुप उस लोहे आदि के विशाल भार को वहन करने में समर्थ हो सकता है। (से चेव ण भंते ! पुरि से जुन्ने जराज जरियदेहे सिढिलवलिअतयाविणगते दंडपरिग्ग हियग्गहत्थे) अब प्रदेशी राजाने केशीकुमारश्रमण से फिर ऐसा पूछाहे भदन्त ! वही पुरुप जब वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाता है और जरा से जारित शरीर वाला होने के कारण शक्ति से शिथिल हो जाता है, त्वचा जिसकी झुर्रियों से युक्त हो जाती हैं और इसी से जिसको शारीरिक शक्ति प्रतिहत हो चुकी होती है, तथा दक्षिण हाथ में जो दण्डा लेकर चलने लगता है (पविरल परिसडियदतसेढी, आउरे, वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवत्तिए) ते ४।२५ मा प्रमाणे छ. रेम કેઈ એક પુરૂષ હોય અને તે યુવા યાવતુ નિપુણ શિલ્પપગત હોય એટલે કે સમ્યક જ્ઞાન યુક્ત હોય તે એવો તે પુરૂષ વિશાળ ખંડના ભારને ત્રપુકના ભારને શીશાના ભારને વહન કરવામાં શું સમર્થ થઈ શકે છે? ત્યારે કેશીકુમાર શ્રમણે તેને (हंता पभू) , प्रशिन, वो ते ५३५ ते ५ वगेरेना विशाल मारने पान ४२वामी समर्थ थ छे. (से चेत्रणं भने ! पुरिसे जुन्ने जराजज्जरियदेहे मिहिलबलिअतयाविणगत्ते दंडपरिगहियग्गहत्थे ) हवे अशी मागभणे પ્રદેશી રાજાને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન કર્યો કે હે ભદંત! તે જ પુરૂષ જ્યારે ઘરડો થઈ જાય છે અને વૃદ્ધાવસ્થાને લીધે જર્જરિત શરીરવાળો હોવાથી અશકત થઈ જાય છે, ચામડી જેની કરચલીઓથી યુકત થઈ જાય છે અને એથી જેની શારીરિક : શકિત પ્રતિહત થઈ જાય છે તેમજ જમણા હાથમાં જે લાકડી ઝાલીને ચાલવા લાગે છે. (पविरलपरिसडियद तसेढी, आउरे, किमीए, पिवासिए, दुव्बले छुहा. परिकिल ते नो पभू पग मह अयभारग वा जाव परिहिवत्तए) नीत