________________
२२०
राजप्रश्नोयस जीवो त सरीर, जम्हा णं भते ! तीसे अउकुभीए णत्थि केइ छिड्ड वा जाव निग्गए, तरहा सुपइटिया में पइण्णा जहा-तं जीवो त सरीरं, नो अन्नो जीवो अल्न सरीरं ॥सू०१३५॥
छाया-तताखलु स प्रदेशी राजा केशिनं कुमारश्रमणमेवमवादीत् अस्ति खलु भदन्त ! एपा प्रज्ञा उपमा, अनेन पुन:कारणेन नो उपाग. च्छति, एवं खलु भदन्त ! अहमन्यदा कदाचित् वात्यायाम् उपस्थानशाला. याम् अनेकगणनायक-दण्डनायक-राजेश्वर-तलघर-माडम्बिक-कौटुम्बि केभ्य-श्रेष्ठि-सेनापति-सार्थवाह-मन्त्री-महामन्त्री-गणक-वारिका-ऽमात्यचेट-पीठमई-नगर-निगम-दूत-धि पालैः साई संपनिवृतो विरामि । _ 'तएणं से पएसी राया इत्यादि ।
पुत्रार्थ-(तए णं) इसकेबाद (पएसी रामा केसिंकुमारसमण एव · बयासी) प्रदेशी राजाने के शीकुमार श्रमण से ऐसा कहो-(अस्थि णं भंते ! एसा पण्णा उवमा, इमेण पुण कारणेण णो उवागच्छइ) हे भदन्त ! यह
जीव एवं शरीर में भेदरूप बुद्धि केवल उपमामात्र है, जैसा कि अभी .. प्रकट किया गया है-कि इस कारण से देव यहां नहीं आता है. (एवं
खलु भने ! अहं अन्नया कयाई बाहिरियाए उबटाणसालाए) हे भदन्त ! • किसी एक समय मैं बाह्य उपस्थान शाला में (अणेगगणणायक, दडणायक-राईसर-तलवर-भाडंविध-कोडविय-२०भ-सेटि-सेणावइ- सत्यवाह. मंति-महामति-गणग-दोवारिय-अमच्च-चेड-पीठमद-नगर-निगम-दूयसंधिवालेहि सद्धिं संपरिवुडे विहरामि) अनेक गणनायक, दण्डनायक, राजा,
सूत्रार्थ:-(तए णं) त्यारपछी (पएपी राया के सि कुमारसमणं एवं क्यासी) प्रदेश २ शी भा२ श्रमथने 21 प्रमाणे ४- (अस्थि एं भंते ! एसा पण्णा उवमा. इमेणं पुण कारणेणं णो उवागच्छद) के महान ! तमे वने અહીં ન આવવા માટે જે કંઈ કર્યું છે તેના વડે તે જીવ અને શરીરમાં ભેદરૂપ 'मुद्धि ४ पभाभात्र छ माम स्पष्टपणे माषित थाय छ. (एवं खलु भंते !
अन्नया कयाई बाहिरियाए उहाणसालाए) हे महत! ये मते 'ola S५स्थानशाणाभा हु (अणेगगणणायकदंडणायक-राइसर-तलवर-माईघिय कोंड्डविय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाह-मति-महामति-गणग-दो चारिय-अमञ्च-चेड-पीठभद-नगर-निगम-दूय-संधि-वालेहि-सद्धिं संपरि