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सुबोधिना टाका. सु. १३२ सूर्याभदेवस्य पुर्व भवजोवप्रदेशिराजवर्णनम म्चामिन ! मुहुर्तक हस्तच्छिन्न वा यावत् जाविताद व्यपापय यावत् मावद् अहमित्र ज्ञाति-निजक स्वजनसम्बन्धिपरिजनम् एवं वदामि-एवं खलु दवानुप्रिया ! पापानि कर्माणि समाचर्य इमामेत पाम् आपत्ति प्राप्नोमि,
तत मा खलु देवानुपियाः! ययमपि केचित् पापानि कमोणि ममाचरत, मा ___ग्वल यगमपि एवमेव आपत्ति प्राप्तुत यथा खलु प्रह, तस्य खलु वं प्रदे.
तुमं एवं वएज्जा-मा ताव मे सामी ! मुहुनगं हत्यच्छिण्णगं वा जोवियाओ चरोवेहि जाव तात्र अह मित्तणाइणि यगमयणसंबंधिपरियणं एवं. क्यासी) इस प्रकार से पदेशी राना का कथन सुनकर केशीश्रमणने उसमे गमा कहा-हे मदोशन ! यदि वह तुमसे ऐसा कहे-हे स्वामिन् ! आप थोडी देर तक ठहरिये. मेरे हाथ पैर न काटिये यावत् मुझे जीवन से हिन न कीजिये, तब तक मैं मित्र, माता आदि ज्ञाति, स्वपुत्रादिक निजक, पितृव्यादि वजन श्वशुर आदिफ सम्बधिजन, दासी दास आदि परिजन, इन सब मे ऐसा कह दू कि( एवं खलु देवाणुपिया ? वाईफम्मासमायरेत्ता इमेयास्वं आवई पाविजामि) हे देवानुप्रियो! मैं पापकों को समाचरित करके इस प्रकार की आपत्ति को पा रहा हूँ (नमा ण देवाणुप्पिया! तुम्भे वि केई पागाई कम्माई समायरइ) इमलिये हे देवानुपियो ! आप लोग कोई भी पापकर्म मत करना कि (मा णभे वि एवं चेत्र आवह पावेजाहि य जहा णं अहं) जिसमे तुमको भी ऐसी आपत्ति में पडना पडे, जैमा (अह णं पएसो ! से पुरिमे तुमं वदेता मा ताव मे सामी ! मुहुत्तगं हत्य. च्छिण्णगं वा जान्य जीवियाओ क्रोवेहि जाव ताव अ मित्तगाइणियगसयणसंबंधिपरियणं एवं वयामि) मा प्रभा प्रथी AM ४थन समगीन કેશીકુમાર પ્રમાણે તેમને કહ્યું કે હે પ્રદેશિન! જે તમને આ પ્રમાણે કહે કે સ્વામિન! આપ શેડી વખત ભી જાવ. મારા હાથપગ કાપે નડિ યાવતું મને જીવન રહિત પણ બનાવે નહિ. હું મિત્ર, માતા, પિતા વગેરે જ્ઞાતિ, સ્વપુત્રાદિક નિજક પિતૃવ્યાદિ સ્વજન, વશુર વગેરે સંબંધીજન, દાસદાસી વગેરે પરિજન આ બધાને ' मा प्रमाणे ही ' (एवं खलु देवाणुपिया! पावाई कम्माइं समायरेता इमेयारूवं आवई पाविजामि) हे देवानुप्रिये ! हुँ पापभानु मायर ४शन Al ordनी शिक्षा नवी २al छु. (तं माण देवाणुप्पिया! तुम्भे वि केइ पाबाई कम्मोई समायरइ) मेथी के देवानुप्रियो तमे आपा
तनु पा५४ मायरता नाहि. (माण भे वि एवं चेव आवई पावेज्नाहि य जहा ण अE) थी तभने मान शिक्षा लागवी ५ वी सागवी २घो छु