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रांजप्रश्नीयसूत्र १७४ १६८ पं. ४)। मनःपर्यवज्ञान विविध प्रज्ञप्त, तद्यथा-जुमतिश्च विपुल मतिश्च तथैव केवलज्ञान सर्व भगिनव्यम्। तत्र खलु यत्तत् आभिनिवोधिकज्ञान तत्खलु ममास्ति ? । तत्र खलु यत्तत् श्रुतज्ञानं तदपि च ममास्ति २॥ तत्र खलु यत्तत् अवधिज्ञान तदपि च . ममास्ति ३। तत्र-खलु यत्तद् मनापर्यवज्ञानं तदपि च ममास्ति ४। तत्र खलु यत्तत् केवलज्ञान तत् खलु मम नास्ति, तत् खलु अर्हतां भगवताम् । इत्येतेन प्रदेशिन् ! अहं तव चतुर्विधेन छानस्थिकेन ज्ञानेन एतमेतद्रपम् आध्यात्मिक यावत् संकल्प समुत्पन्नं जानामि पश्यामि ।। मू० १२९ ।।
और क्षायोपशमिकके भेद से दो प्रकार का कहा गया है। इसका भी वर्णन नन्दीमत्र में किया गया है। (मणपजवनाणे दुविहे पण्णत्ते) मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार का कहा गया है (त जहा-उज्जुमईय. विउलमईय)-ऋजुमति और विपुलमति, (तहेव केवलनाण सव्व भाणियन्त्र) इसी प्रकार केवलज्ञान का वर्णन भी यहां पर करना चाहिये (तत्थ ण जे से आभिणिवोहियनाणे से णं मम अस्थि) इन पांच ज्ञानों में से मुझे मतिज्ञान रूप आभिनिवोधिकज्ञान है। (तत्थ ण जे से मुयनाणे से वि य मम अस्थि) श्रतज्ञान भी है (भोहियणाणे से वि य मम अत्थि) अवधिज्ञान भी है। (तत्थ ण जे से मणपजवनाणे से वि य मम अत्थि) और मुझ मनः पर्ययज्ञान भी है। (तत्थ णं जे से केवलवाणे से णं मम नत्थि) केवल ज्ञान मुझे नहीं है (से ण अरिहंताणं भगवंताणं) यह केवलज्ञान अहेन्त .. भगवन्तों के होता है। (इच्चेएणपएसी ! अह तव चउबिहेण छाउઅવધિજ્ઞાન ભવપ્રત્યયિક અને ક્ષાપશમિકના ભેદથી બે પ્રકારનું કહેવાય છે. આનું qdन पर नन्हीसूत्रमा ४२वामी माव्यु छ. (मणपज्जवनाणे, दुविहे पण्णत्रो) भन्नः पर्यवज्ञान में प्रानु उपाय छ. (त जहा उज्जुमई य विउलमई य) संभ नुमति अन विपुलमति (तहेव केवलनाण सन्न भाणियव्य) 20 प्रमाणे
सजाननु वर्णन ५ ४२ मध्ये. (तत्थ ण जे से आभिणियोहियनाणे से ण मम अत्थि) २ पांय हानामाथी भने भतिज्ञान३५ मालिनियाधिशान छ. (तत्थणं जे से सुयनाणे से विय मम अस्थि) श्रुतज्ञान ५ छ. (ओहिय णाणे से विय मम अत्थि) अवधिज्ञान पार छ. (तत्थ ण जे से मणपज्जत्र नाणे से विय मम अत्थि) मने मन:५वज्ञान ५ छ. (तत्थ णजे से केवलनाणे से ण मम नत्थि) ५२'तु भने विज्ञान नथी. (से गं अरिहताणं भगवंताणं, २॥ वज्ञान मर्डन्त सन्तान डाय छ. (इच्चेएण' पएसी ! अब तत्र च उबिहेण छउमस्थिएणणाणेण इमेयारूप अज्झस्थिय जाच संकप्प