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सुबोधिनी टीका सू १२९ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजोवप्रदेशिराजवर्णनम..... १७३ . चतुर्विध प्रज्ञप्त, तद्यथा-अाग्रहः ? १, ईहा २, अवायः ३. धारणा ४॥ अथ कोऽसौ अवग्रहः अपग्रहो द्विविधः प्रज्ञसः यथा नन्यां यावत् सैषा धारणा, तदेतद्, आभिनिवोधिकज्ञानम् । अथ किं तत् श्रुतज्ञानम्? श्रुतज्ञान द्विविध प्रज्ञप्स', तद्यथा-अङ्गमविष्ट' च अङ्गबाहय च, सर्व भणितव्य यावत्दृष्टिवादः। अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक क्षायोपशमिक यथा नन्द्याम् (नं. पृ. बोहियनाणे) हे भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञान का क्या स्वरूप है ? (भाभिगिबोहियनाणे चउविहे पण्ण) हे प्रदेशिन् । आभिनियोधिकज्ञान चार प्रकार का कहा गया है। (तं जहा-उग्गहे १ ईहा २ अबाए३ धारणा ४) जैसेअवग्रहः इहा, अवाय और धारणा। (से कि त उग्गहे) हे भदन्त ! अपग्रह ज्ञान का क्या स्वरूप है। (जहान दीए जाव से तं धारणा, से तआभिणि योहियणाणे) अवग्रह से लेकर धारणापर्यन्त सब विवेचन नन्दीमूत्र में कहा गया है, इस प्रकार वह आभिनियोधिकज्ञान का स्वरूप है। (से कि तसुयनाणे) हे भदन्त ! श्रतज्ञान का क्या स्वरूप है ? (सुयनाणे दुविहे. पणत्ते) हे प्रदेशिन् ! श्रुतज्ञान दो प्रकार का कहा गया है। (त जहाअंगपविट्ठच अंगवाहिरियं च) जैसे-अंगप्रविष्ट और अंगवाह्य (सन्न भोणि ययं जाव दिहिवाओ) इन दोनों श्रुतज्ञानों का वर्णन भी नन्दिमूत्र में कहा गया है अतः दृष्टिबाद तरु श्रुतज्ञान का समस्त वर्णन वहां से देखना चाहिये, (ओहिनाण भवपञ्चइयं खओवसमियं जहा नंदीए) अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक છે. જેમકે આભિનિધિજ્ઞાન, મતિજ્ઞાન થતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન,મનઃ૫ર્ચવજ્ઞાન અને કેવલજ્ઞાન. (से किं त आभिणियोहियनाणे) लत ! मालिनिमाधि शान २१३५ छ ? (आभिणियोहियनाणे चउबिहे पाण) हे प्रदेशिन् ! मालानिमाविज्ञान या प्रातु ४वाय छ. (त' जहा-उग्गहे १ ईहा.२ अवाए ३ धोरणा ४) भ3 सवा १, २, मवाय 3, मने धारा ४,. (से कि त उग्गहे) हे मत ! अवार्ड ज्ञान २१३५ 3' छ ? (ग्गहे दुविहे पण्ण) . प्रशिन २५वड शान थे. २ नु रुवाय छ. (जहा नदीए जान से त धारणा, से तं आभिणिवोहियणाणे) અવગ્રહથી માંડીને ધારણ સુધીનું સમરત વિવેચન નંદીસુત્રમાં સ્પષ્ટ કરવામાં भाव्यु छ. या प्रमाणे मालिनिगाधिकाननु स्व३५ छ ? (से कि त सुयनाणे) डे मत ! श्रुतज्ञान २५३५ यु छ ? (सुघनाणे दुविहे पण) के प्रशिन ! श्रुतज्ञान में नु छ. (नजहा अंगपविष्टच अंगवाहिरियं च) म मा प्रविष्ट २ . (ल भाणियन्त्र मात्र दिष्ठियाओ) २५ न्ने शुतज्ञानानु वर्णन પણ નન્દિત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે. તેથી દષ્ટિવાદ સુધી શ્રતજ્ઞાનનું બધું વર્ણન त्यांथी aa arejी देनये. (ओहिनाणंभवपञ्चइय खोवसमियौं जहा नदीए)