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________________ सुवाधिनी टीका' सू. १२६ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् १५९ किं परिणमयति ? किं स्वादति ? किं पिबति ? किं ददाति ? किं प्रयच्छति ? यत् खलु एष एतावन्महालयाय मनुष्यपरिपदो मध्यगतो महता शब्देन ब्रवीति ?. एवं सप्रेक्ष्यते, चि सारथिमेवमवादीत्-चित्र ! जडाः खलु भो ! जड पर्युपासते यावद् ब्रवीति, स्त्रात्यामपि खल उद्यानभूमौ नो शक्नोमि सम्यक् प्रकाम प्रविचरितुम् ॥१० १२६॥ टीका-'तएण से चित्त' इत्यादि ततः खलु स चित्रः सारथियंत्र व मृगवन-मृगवननामकमुद्यान यत्रैव केशिनकुमारश्रमणस्य अदरसामन्त - नातिदर नातिसमीपम्प स्थल तत्रवोप(किं परिणामेइ) किस प्रकार से खाये हुए भोजन को परिणमाता है ? (किं खायइ, किं पियइ, किं दलइ, किं पयच्छई) कैसी रुचिर वस्तु को यह खाता है ? किस प्रकार की रुचिर वस्तु का यह पान करता है ? यह लोगों के लिये क्या देता है ? क्या विशेषरूप से यह उन्हें वितरित करता है ? (जण एस ए महालियाए मणुस्सपरिसाए मज्झगए महया सण' याइ) जो यह पुरुष इतनी बडी विशाल मनुष्य परिषदा के बीच में यैठ कर बडे जोर से बोल रहा हैं ? (एवंसपेहेइ) ऐसा उसने विचार किया (चित्तं सारहिं एवं बयासी) इस प्रकार विचार करके फिर उसने चित्र सारथि से ऐसा कहा-(चित्ता ! जड खलु भो जङ पज्जुवासंति, जाव वूयाइ, साए वि य ण उज्जाणभूमीए नो सम्म पकाम पवियरित्तए) हे चित्र! जड जड की पर्युपासना करते हैं यावत् यह बडे जोर से बोल रहा है। मैं अपनी भी उस उद्यानभूमि में इच्छानुसार अच्छी तरह से घूम नहीं पा रहा हूँ। Iतने मा२ ४२ छ ? (किं परिणामेइ) वीशत माघेसा मानने परिणभावेछ? (किं खायइ, किं पियइ, किं दलइ, किं पयच्छइ) तनी ३यिनी वस्तुना આ આહાર કરે છે? કઈ જાતની રૂચિની વસ્તુનું આ પાન કરે છે? લેકેને આ शु मापे छ ? विशेष३५थी मा शुखाना भाटे वितरित ४२ छ ? (जण एस ए महालियाए मणुस्सपरिसाए मज्झगए महया सण बूयाइ) ५३५ मामी भाटी व परिषदानी ५-ये मेसीन पर भाटा सामाले छ ? (एव' सपेहेइ ) मा प्रमाणे तेरे पिया२ यो (चित्त सारहिं एवं क्यासी) माम विया२ ४शन पछी तेरे यित्र सारथिने २मा प्रमाणे ह्यु-(चित्ता ! जड्डा खलु भो जहुँ पज्जुवासति, जाव याइ, साए वि य ण उज्जाणभूमीए नो सचा. एमि सम्म पकाम पवियरित्तए) यित्र! ४ 30४ ने सेवे छ यावत्मा म मोटर सा' બોલી રહ્યો છે. હું પોતે પણ આ ઉદ્યાનભૂમિમાં સ્વસ્થતાપૂર્વક સારી રીતે હરી ફરી શકતો નથી.
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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