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सुबोधिनी टीका स्तू. १२६ सूर्याभदेवस्य पूर्व अवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् - १५७ स्थापयति, स्थात् प्रत्यरोही, तुरगान मोचयति, प्रदेशिन राजानमेवमवादीअत्र खल स्वामिन् ! अश्वाना मनाम सम्यक अपनामः। ततः खलु स प्रदेशी राजा रथात प्रत्यवोहति, चित्रेण सारथिना साधम् अंश्वानां श्रम काम सम्यक अपनयन पश्यति यन्त्र के शिकुमारश्रमण महातिमहालयायाः परिषदो मध्यगत महत्ता शब्देन धर्ममाख्यान्त' दृष्ट्वा अयंतप आध्यात्मिकः यावत् समुदपयत- जडाः खलु भो ! जड पर्युपासते, मुण्डाः स्थको लेकर गया. (तुरए णिनिहाइ) वहां पहुंचते ही उसने घोडों को रोक लिया (रह नेइ) और रथकों खडा कर दिया (रहाओ पचोरुहई) रथ के खडे हो जाने पर वह रथ से नीचे उतरा. (तुरए मोएइ) नीचे उतर कर घोडों को एच से खोल दिया (पएसि राय ए बयासी) फिर उसने प्रदेशी राजा से एसा कहा-(एह णसम-शिलाम सम्म अवणेमो) हे स्वामिन् ! रथ खडा हो चुका है आप उतर आइये, मैं यहां पर घोडों के श्रम को एवं उनकी मानलिक सलानि को ठीक तरह से दूर करलू (तए ण से पएसी-राया रहाओ पचोरहइ) सारथि के इस कथन से वह प्रदेशी राजारथ ने नीचे उतरा (चित्तेण सारहिणा सद्धिं आसाण सम किलाम सम्म अवणेमाणे पासइ) नीचे उतर कर उसने चित्र. सारथि के साथ वहां घोडों का श्रम एवं क्लम (कादंट) अच्छी तरह से दूर करते हुए, एवं विश्राम करते हुए उस ओर, देवा (जत्थं केसिकुमारसमण सहइमहालियाए परि. साए मझग सहया सद्दे धम्ममाइक्खमाण पासित्ता हमेयारूबे अज्झथिए (तुरए णिमिण्हइ) त्या पहायता,४ तेणे याने राज्या . (रह ठवेइ) मने २थने योसाव्या: (रहोओ - पच्चोरुहइ) २थ क्यारे । २६ गयो त्यारे ते स्थमाथी नीय उता. (भए सोएड) नान्ये उतरीन घामाने २थमाथी भुत ४ा. (पए सिं राय एवं बयाली) त्या२ ५छा तो प्रशी ने मानणे धु(एह सामी ! आमाण सम किलाल सम्म अवणेमो) र स्वामिन् ! २५ 't 2 यूथे। छ. मा५ नीय उत।. एमडी घोडायना भने भने 'तभनी
मानसि सानिने सारी शत (२ ४३१ ६७.(तएणले पएसी राया रहाओ पच्चोदाइ) - साथिना 241 ४थनथी ते प्रशी २७ स्थमाथी नीय उत्या. (चित्तण सारहिणा सद्धि आप्ताण सम किल्ला सम्म अवणेमाणे पासई) नीय उतरीन तेरे स्थित्रसा२- થિની સાથે ત્યાં ઘોડાઓનાં શ્રમ અને કલમ સારી રીતે દૂર કરતાં તેમજ વિશ્રામ ४२ता ते त२३ यु (जस्य केसिकुमारसमण महइमहालियाए परिसाए मज्झ. .. गय' महया सहण यस्मलाइकखमाण पासित्ता इमेयोरूवे अज्ञथिए जाव