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________________ १२२ रामप्रश्नायसूत्र यावद्हृदयो भवति स खलु एप केशीकुमारश्रमणः पूर्वानुपूर्वी चरन् ग्रामानुग्राम द्रवन् इहागतः, इहस प्राप्तः, इह समवसृतः, इहैव श्वेतविकाया नगर्या बहिगवने उद्याने यथामतिरूप यावद् विहरति, तद् गच्छामः खल देवा. नुप्रियाः! चित्रस्य सारथेः एतमर्थ पियं निवेदयामः, प्रिय तस्य भवतु। अन्योन्यस्यान्ति के एतमर्थ प्रतिशृण्वन्ति, यत्रैव श्वेतविका नगरी यत्र व चित्रस्य है, (जस्स ण णामगोयस्ल वि. सबणयाए हट जाव दियए मवई) तथा जिनके नामगोत्र के भी श्रवण से जो हष्टतुष्ट यावत् हृदयबाला होता है (से ण एस केसीकुमारसमणे पुन्वाणुपुलिंब चरमाणे गामाणुगाम दहनमाणे इहमागए) वे ये केशीकुमारश्रमण तीर्थकर परम्परा के अनुसार विचरते हुए एवं एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विहार करते हुए यहां आये हैं। (इह संपशे) यहां प्राप्त हुए हैं। (इहसमोस) यहां समचमृत हुए हैं। (इहेव सेयवियाए णयरीए बहिया उजाणे अहापडिरूवं जाब विहरह) इसी श्वेतांधिका नगरी के बाहर उद्यान में यथाप्रतिरूप अवग्रह प्राप्तकर यावत् विराजते हैं। (त' गच्छामो ण देवाणुपिया। चित्तस्स सारहिस्स एयम पियं निवेदेमो पिय से अवउ) तो हे देवानुप्रियो ! चले और चित्र सारथि के इस प्रिय अर्थ का उनसे निवेदन करें, हमारा यह निवे. दन उन्हें बडा ही प्रिय लगेगा (अण्णमण्णस्स अंतिए एयम पडिसुणे ति) ते मलिलाषा राणे 2. (जस्मण गामगोयम्स वि सवणयाए हतुट्ठ नाव हियए મરૂ) તેમજ જેઓશ્રીના નામ ગેત્રના શ્રવણથી જ જે હણતુષ્ટ યાવત્ હૃદયવાળા थ, 14 छ. (से ण एस केसीकुमारसमणे पुयाणुपुचि चरमाणे गामाणुगाम दुइज्जमाणे इहमागए) तेमाश्री उशीभा२ श्रम तीर्थ ४२ ५२५२२ મુજબ વિચરણ કરતા અને એક ગામથી બીજે ગામ વિહાર કરતાં અહીં પધાર્યા છે. (इह संपत्त) ही प्राप्त थया छ. (इह समोसढे) मी सभपस्त थया छ. (इहेव सेयवियाए गयरीए पहिया उज्जाणे अहापडिस्व जाव विहरइ) આ વેતાંબિકા નગરીની બહારના ઉદ્યાનમાં યથાપ્રતિરૂપ અવગ્રહ પ્રાપ્ત કરીને યાવત્ विराले छे. (त गच्छामो ण देवाणुपिया ! चित्तस्स सारहिस्स एयम पियं निवेदेमो पिय से भबउ) त्यारे हे हेवानुप्रियो ! मापणे चित्र सारथिनी पासे જઈને આ પ્રિય સમાચાર વિષે તેમને ખબર આપીએ. અમારી આ ખબર તેમને भूम मश. (अण्णमण्णस्त तिए एयम पडिसुणेति) मा प्रमाणे तेमा બધા પરસ્પર એક બીજાની વાતને એકમત થઈને સ્વીકારી લે છે. ત્યાર પછી
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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