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________________ ह ... सुबोधिनी टीका झू. ११७ सूर्याशदेवस्य पूर्वभवजीवप्रदेशीराजवर्णनम् नगर्या निर्गच्छति तथैव याबद् बसन् कुणालाजनपदस्य मध्यमध्येन या व केकया यत्र व श्वेतविका नगरी यत्रैव मृगवनम् उद्यान तौव उपागगच्छति, उद्यानपालकान्. शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादील-यदा खलु देवा. नुप्रियाः । पापित्यीयः केशीनामकुमार श्रमणे: पूर्वानुया चरन् ग्रामानुग्राम'द्रवन् इहोगच्छेत्, तदा खल्लु यूयं देवानुप्रियाः ! केशिकुमारश्रमण तहेव जाव वसमाणे कुणाला जणवयस्त मज्झमझेण जेणेव के इयअद्ध जेणेव से याविया गयरी जेणेव मियवणे उजाणे तेणेव उवागच्छई) यहां से आगे चित्र सारथी जिस प्रकार श्वेताबिका नगरी ले निकल कर, कुणाला जनपद (देश) में स्थित श्रावस्ती नगरी आया, उसी प्रकार वह श्रावस्तो नगरी. से भी निकलकर केकयाई जनपद में स्थित श्वेताविका नगरी में पहुंचा. इसलिये यहां पर पूर्व की तरह से ही समग्र पाठ संगृहीत करना चाहिये. इसी बात को सूचित करने के लिये 'जहा सेय विधाए गयरीए णिग्गच्छई। इत्यादि यह पाठ कहा गया है. अर्थात् वह चित्रसारथि जिस प्रकार से .: श्वेतांयिका नगरी से निकलता है, उसी प्रकार से यावत् मार्ग में पडाव डालता. हुभा वह कुणाला जनपद के मध्यमध्य से होता हुआ जहां केकया था और जहां श्वेतांयिका नगरी थी और उस में भी जहां मृगवन नाम का ..... उद्यान था वहां आया (उजाणपालए सहावेइ) वहाँ आकर के उसने उद्या नपालो को बुलाया.. (सदावित्ता एवं वयानी) वहां आकर के. उसने ऐसा ...कहा-(जया ण देवाणुप्पिया! पासावचिज्जे के सी नाम कुमारसमणे पुब्वा . १२५ यार ४शन सin (जहा सेय वियाए णरीए. निग्गच्छइः तहेव 'जाव पसमाणे कुणाला जणवयस्स मज्झमज्झण: जेणेव केइंय अद्ध जेणेव सेयंविया णयरी जेणेव मियवणे उज्जाणे, तेणत्र उवागच्छइ) महाथी ते ચિત્રસારથી પહેલાં જેમ તે તાંબિકાનગરીથી નીકળીને કુણાલા, જનપદમાં સ્થિત શ્રાવસ્તી નગરીમાં આવ્યું હતું, તેમજ તે શ્રાવસ્તી નગરીથી બહાર નીકળીને કેકયા. જનપદમાં સ્થિત શ્વેતાંબિકા નગરીમાં પહોંચે અહીં તે પ્રમાણે જ વર્ણન સમજી सेवु नये. से वातन. मनावका भाटे १ 'जही सेयवियाए णयरीए णिगच्छ' વગેરે પાઠને ઉલ્લેખ કરવામાં આવ્યું છે. એટલે કે તે ચિત્ર સારથિ જેમ તા. - કિ નગરીથી નીકળે છે, તે પ્રમાણે જ યાવતું મુકામ કરતે તે કુણલા જનપદના એકડમ મધ્યમાં પસાર થઈને જયાં કેકર્યાદ્ધમાં થતાંબિકા નગરી હતી અને તેમાં . .४यां भृगवन नामे उधान तु त्या माव्या. (उजाणपालए सहावेइ), त्या मावाने तो धान पास मसान्यो. (सावित्ता एवं बयासी). मारावीन. मा. . प्रभाए यु. (जया ण देवाणुपिया! पासावञ्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे --20.. .. .
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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