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________________ सुबोधिना टोका' सु. १०७ सूर्याभदेवस्य पूर्व भवजीवप्रदेशिराजवर्णनम् । खंदमहेइ वा एवं रुद्दमहेइ मउंदमहेइ वा वेसमणमहेइ वा नागमहेइ वो भूयमहेइ वा जश्वमहेइ वा थूभमहेइ वा चेइयमहेई वा रुक्खमहेइ वा गिरिमहेइ वा दरिमहेइ वा अगडमहेइ वा. नईमहेइ वा सरमहेइ बा सागरमहेइ वा, जं णं इमे बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता राइन्ना इक्खगा: णाया कोरव्वा जहा उववाइए तहेव अप्पेगइया हयगया जाव अप्पेगइया पायचारविहारेणं महया महया वंदावंदएहिं निग्गच्छंति ? । एवं संपेहेइ संपेहित्ता कंचुइनपुरितं सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी किं णं देवाणुप्पिया ! अज सावत्थीए नयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा जाव णिग्गच्छति ॥ सू० १०८ ॥ .. ... . छाया-ततः खल श्रावस्त्या नगर्याः शृङ्गाटक-त्रिक-चतुष्क-चत्वरचसुमुख-महापथपथषु महान् जनशब्द इति वा जनव्यूह इति वा जन वाले इति वा जनकल कल इति वा जनोमिरित वा जनात्कलिकेति वा जनसन्निपात .. इति वा यावत् परिषत् पयुपास्त। . ... .. .. 'तए ण सावत्थीए नयरीए' इत्यादि । मूत्रार्थ-(तए णं) इसके बाद (सावधीए नयरीए) श्रावस्ती नगरी के (सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-मडापहपहेसु महया. जणसदेह वा. जणवूहेइ वा, जणबोलेइ वा जणकलकलेइ . वा जणुम्मीइ. वा. जणुकलि याई वा, जणस निवाएइ वा, जाव परिसा पज्जुवासई) अङ्गाटक में त्रिक.में चतुष्क में, चत्वर में, चतुर्मुख में, महापथ में एवं पथ में मिलित मनुष्योका पर 'तए ण सावत्थीए नयरीए' इत्यादि । .. .सूत्रार्थ:-(त एण) त्या२५छ। (सावत्थोए नयरोए) श्रावस्ती नारीना (सिं, घाटग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया जणसदेवा जा बूहेइवो, जणबोलेइवा जणकलकलेह वा जणुम्मीइ वा जणुक्कलियाइ वाम जणस निवाएइ वा जाव परिसा पज्जुवासइ) Uoutमा, त्रिशुभां, यता, માં, ચત્વરમાં, ચતુર્મુખમાં, મહાપમાં અને પથમાં એકત્ર થયેલા અને આવકો
SR No.009343
Book TitleRajprashniya Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages499
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size36 MB
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