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________________ सुबोधिनी टीका. सू. ८भगवद्वन्दनार्थसूर्याभस्य धोपणा शब्दयति शब्दयित्वा एवमयादीत्-क्षिपमेव भो देवानुमिय ! मूर्याभे विमाने सुधर्मायां सभायां मेघौघरसितगम्भीरमधुरशव्दाँ योजनपरिमण्डलां मुस्वरवाटां त्रिकृत्वः उल्लालयन्२ महता२ शब्देन उद्घोपयन्२ एवमवादीत् 'आज्ञापयति खलु भो मूर्याभो देवो गच्छति खलु भोः सूर्याभो देवो जम्बूद्वीपे द्वीपे भारतवर्षे आमलकल्पायां नगर्याम आम्रशालबने चैत्ये श्रमणं भगवन्तं महावीरमभिवन्दितुम् यूयमपि भो देवानुप्रियाः ! सर्वथा यावत् नादितरवेग समय (पायत्ताणियाहिबई देवं सदावेइ) पदात्यनीकाधिपति को बुलाया. (मदावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उससे ऐसा कहा-(खिप्पामेव भी देवाणुप्पया ! सूरियाभे विमाणे सुहम्माए सभाए मेघोघरसियगंभीर महुरसद) हे देवाणुप्रिय! तुम शीघ्र ही मूर्या भविमान में सुधर्मासभा में मेघौघरसित गंभीर मधुर शब्दवाली (जोयणपरिमंडलं) एक योजन की. विस्तार वाली (सुसरघंट) सुस्वर घंटा को (तिकतो) तीन बार (उल्लालेमाणे २) वजाते बनाते (महया २ सद्धेगं उग्योसेमाणे २ एवं वयाहि) जोर २ से बार बार घोषणा करते हुए ऐमा कहो (आणवेइ ण भो सूरियाभे देवे, गच्छइ ण' भो सूरियाभेदेवे) हे देवो ! मूर्याभदेव प्राज्ञा करता है, भो देवो! मूर्याभ देव जाता है, (जंबुदीचे दीवे भारहे वासे आमल. कप्पाए णयरीए अंवसालवणे चेइए समगं भगवं महावीरं अभिवंदित्तए) जंबूद्वीप नामके द्वीप में जो भरतक्षेत्र है. उसमें जो आमलकल्पा नगरी है, उसमें भी जो आम्रशालवन नामका उद्यान है-उसमें विराजमान याडिवई देवं सदावेइ) पायःण सेनाना सेनापतिने मासाव्या. (सदावित्ता एवं वयासी) मावाने तेने २ प्रमाणे : (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मरियाभे विमाणे सुहम्माए सभाए मेघोघरसियगंभीरमहुरसह) 3 पार्नु પ્રિય! તમે જલદી સૂર્યાભવિમાનમાં સુધર્મા સભામાં મેઘોઘસિત ગંભીર મધુર Av६ युत (जोयणपरिमंडल) मे योजन 261 विस्ता:l (सुसरघंट) सुर-२वाणी बटाने (तिवखुत्तो) त्र मत (उल्लालेमाणे २) 43di 4thi (महया २ सदेगं उग्धोसेमाणे २ एवं वयाहि) पर भाटा सा पारवार धापा ४२त ॥ प्रमाणे ४ (आणवेइण भो मुरिया देवे , गच्छइण भो मूरियामे देवे) हे!! सूर्याभव माज्ञा ४२ छ, उ वो ! सूर्याभव कनय छे. (जंबूदीवे दी भारहेवासे आमलकप्पाए णयरीए अवसालवणे चेइए समण भगव महावी अभिवंदित्तए) द्वीप नामना दीपमा २ मत क्षेत्र छ. તેમાં જે આમલકલ્પાનગરી છે. તેમાં પણ જ્યાં આમ્રશાલવન નામે ઉદ્યાન છે, તેમાં
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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