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________________ सुबे धिनी टीका देवकृत समवसरण भूमिसंमार्जनादिकम् १५ आभियोगिका देवाः अभ्रवादलकानि विकृर्वन्ति विकुर्वित्वा क्षिप्रमेव प्रस्तनितयिन्त प्रस्तनितयित्वा क्षिप्रमेव विधयन्ति वियित्वा श्रमाय भगवतो महावीरस्य सर्वतः ममन्तात योजनपरिमण्डले नात्युदर नातिमृत्तिकं तत् प्रविरलमस्पृष्ट रजो रेणुविनाशनं दिव्यं सुरभिगन्धोदक वर्ष वर्षन्ति, वर्षित्वा निहतरजः नष्टरजः को या यावत् उधान को त्वरा से रहित होकर यावत् सब तरफ से अच्छ नरंह सींचता है (एवामेव तेवि सूरियामस्म देवस्स आभियोगिया देवा अभबद्दलए विउन्वंति) इसी प्रकार से उन सूर्याभदेव के आभियोगिक देवोंने अभ्रमेघों की विकुर्वणा की-सो (विउवित्ता खिप्पामेव पयणतणायंति) विकु. बंणा करके बहुत ही शीघ्र वे मेघ बड़े जोर से तडतडात करते हुए गरजने लगे (पयणतणाइत्ता खिप्पामेत्र विज्जुयायति) गरज२ कर शीघ्र ही वे विजलियों को चमकाने लगे (विज्जुयाइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स सचओ समता जोयणपरिमंडल णचोदगणाइमट्टियं तं पविरलपप्पुरसिय) विजलियों को चमका कर फिर वे श्रमण भगवान महावीर की उस योजनपरिमित मडलाकार अमि में वेगवान अति दृष्टि से रहित होकर वरसे, इससे कोचड नहीं होने पाये, रिमझिम २ रूप में अचित्त वृष्टि हुई-इस अचित्त दृष्टि से (रयरेणुविणासणं) जो जल गिरा उससे रजरेणु का विनाश हो गया अर्थात् रज दब गई (दिव्यं सुरभिगंधोदगं वासं वासंति) इस तरह से सूर्याभदेव के आभियोगिक देवोंने अनને ત્વરા રહિત થઈને શાંતિથી ધીમે) યાવત ચારે બાજુએથી સારી રીતે છાંટે છે. (एषामेव ते विरियाभस्स देवम्स आभियोगिया देवा अभवदलए विउच्चाति) मा प्रमाणे १ ते सूर्याभवन लियोनि वा स भेधोनी (वय ४२. त (विउवित्ता खिप्पामेत्र पयणतणायंति) पिनु शने मेBrea मेघो गई भोटा सा ५५ ५३ ४२त १२४वा साया. (पयणतणा इत्तो खिप्पामेव विज्जुयाय ति) १२ १२७ने ३ तेयो वाणीयो यमावका साम्या. (विज्जुयाइत्ता समगस्स भगवओ महावीरस्त माओ समता जोयणपरिमंडल णचोदगणाइमहिय तं पविरलपप्फुसिय) वीजा यमકાવીને પછી તેઓ શ્રવણ ભગવાન મહાવીરની તે જન જેટલી મંડલાકાર ભૂમિમાં વેગવાન અતિ વૃષ્ટિથી રહિત થઈને વરસ્યા. જેથી કાદવ થયે નહિ, ઝરમર ઝરમર मायत्त वृष्टि 25. भा अयित्त वृष्टिथी (रयरेणुत्रिणास) २ पाणी ५३यु तेथी भुने। विनाश गया. गेट पूण 55. दिन सुरभिगधोदग' वास वासंति) माशते सूर्याभवन मालियोनि वारे सभेवानी विप
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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