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________________ सुबोधिनी टीका. स. ८९ सूर्याभस्य अलङ्कारिकसभाप्रवेशादिवर्णनम् अतिशयातिशयं कारयन् पालयन् विहरस्व इति कृत्या=इत्युक्त्वा जयजय शब्द प्रयुञ्जन्ति कुर्वन्ति ॥ ० ८८ ॥ मूलम्त एणं से सूरियाभे देवे महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसित्ते समाणे अभिसेयसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे अणुप्पयाहिणीकरेमाणे अल कारियसभं पुरथिमिल्लणं दारेणं अणुपविलइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे संनिसपणे ॥ सू० ८९ ॥ - छाया-ततः खलु स मूर्याभो देवो महता महता इन्द्राभिषेकण अभिषिक्तःसन् अभिषेकसभायाः पौरस्त्येन द्वारेण निर्गच्छति, निर्गत्य यत्रैव अलङ्कारिकसभा तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य अलङ्कारिकसभाम् भर्तृत्व, महत्तरकत्व एवं आज्ञेश्वरसेनापत्य बहुत २ अतिशयरूप से करते हुए और उनका पालन करते हुए, रहो-इस प्रकार कहकर उन्होंने पुन: जय २ शब्दोंका उच्चारण किया। सू० ८८॥ . 'तएणसे भूरियाभे देवे महया महया' इत्यादि। सूत्रार्थ-(तएण) इस के बाद (से भूरियाभे देवे) वह सूर्याभदेव जब (महया२ इंदाभिसेगेण) अतिविशाल इंद्राभिषेकद्वारा अभिषिक्त हो चुका तब (अभिसेयसभाओ पुरथिमिल्ण दारेण निग्गच्छइ) पूर्व के द्वार से होकर उस अभिषेक सभा से बाहर निकला. (निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ) निकलकर फिर वह जहां अलङ्कारिकसभा थी સેનાપત્યરૂપ શાસન કરતાં અને તેમનું પાલન કરતાં. રહે, આ પ્રમાણે કહીને તેમણે ફરી જય જય શબ્દોનું ઉચ્ચારણ કર્યું. તે સૂઇ ૮૮ છે ___ 'त एण से सरियामे देवे महया महया' इत्यादि। · सूत्रार्थ-(तएणं) त्यार पछी (से सरियामे देवे) ते सूर्यालय न्यारे (महयार इंदाभिसेगेणं) मतिविशाल छन्द्रामिषे 43 मनिषित 25 यूथ्यो त्यारे (अभिसेयसभाओ पुरथिमिल्लेण दारेण निग्गच्छद) ते पूर्वाश्थी ते मलि साथी मा२ नीच्या. (निग्गच्छित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ) नाजान त नयां भरि सता ती त्यां गयी. (उवागच्छित्ता अलंकारियसभ
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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