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________________ सुवोधिनी रीका सूट सूर्यामविमानस्य देनकृतसज्जीकरणादिवर्णनम् ५९३ सूर्याभ विमानम् उपचितचन्दनकलश चन्दनघटसुकृततोरणप्रतिद्वारदेशभाग कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सूर्याभ विमानम् आमतावलक्तविपुलवृत्तप्रलम्बितमाल्यदायकलाप कुर्वन्ति, अप्येकके देवा:-मूर्यास विमान पञ्चवर्णसुरभिमुक्तपुष्पापुञ्जोवचारकलितं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सूर्याभ विमान कालागुरुप्रवरकुन्दुरुष्क्रतुरुकधूपप्रसरद्गन्धोद्रतासिराम कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सरस रक्तचन्दन के हाथों में लगाकर कि जिन हाथो में पांचों अंगुलियां स्पष्ट उछरी हुई थी उसे चित्रित बना दिया. (अप्पेगइया देवा हरियाभं विमाणं उचियचंदणकलसं चंदण घडसुकायतोरणपडिदुशरदेसमाग काति) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को गृहान्तचतुष्कों में चन्दन चर्चित कलशों से सुहावना बनाया. तथा बहिवारों पर भी अच्छी तरह से चन्दन चर्चित कलशों को स्थापित किया (अप्पेगइया देवा सुरिया विमाणं आसत्तोसत्तवि उलट्टवग्धारिधमझामकलावं करेंति) तथा किननेक देवोंने उस सूर्याभविमान को पुष्पमालाओं के ऐसे समूर से कि जो उसमें ऊपर नीचे लटकाया गया था युक्त किया (अप्पेगड्या देवा सरियाम विमाण पंचव मसुरभिमुक्कपुप्फपुंजोय यार कलियं करें ति) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को पांचवर्णनाले एवं सुगंधित पुष्पों के इधर उधर बिखरे हुए समूह की रचनाविशेष से युक्त किया (अप्पेगइया देवा मुरियाभ विमाण कारागुरुरवा कुदुरुतुरुकधूवमघमघतगंधुद्धयाभिराम करेंति) तथा कितनेक देशों ने उस सूर्या मविमान को कृष्णाરકતચંદનના જેમાં પાંચ પાંચ આંગળીઓ સ્પષ્ટપણે દેખાય છે તેવા થાપાઓથી यित्रित मनायु (अप्पेगड्या देवा सुरियाम विमर्माण उवचियचंदणकलस चंदणघडकयतोरणपडिदुवारदेखभाग ।रेलि) तम०४ ४८मा वोगे त સૂર્યાભવિમાનના ચાર ચાર ખૂણાઓમાં ચન્દનલિતકળશે મૂકીને તેને સુશોભિત કયુ” તેમજ દ્વારની બહાર પણ ચંદનચર્ચિત કળશ મૂકીને તેની શોભામાં અભિવૃદ્ધિ કરી. (अप्पेगइया देवा सरियाम विमाण आपत्तोसत्तविउलबवाघारियमल्लदामकलावं करेंति), तेम ४८८ वाय ते सूर्यालविभानने पुष्पमालामाना समूहाथी यथास्थाने शासन शोमायु: (अप्पेगडया देवा सूरियामं विमाण पंचत्रणसुरभिमुक्कपुप्फपुजीवयारकलिय कति) तेभ सा वोय ते सूर्यासविમાનને પાંચવર્ણવાળાં તેમજ સુગંધિત પુષ્પને આમતેમ નાખીને સુશોભિત કર્યું. (अप्पेगइया देवा सूरिया विमाण झालागुरुपवर कुंदरुक्कतुरुक्कधूवमधमघतगद्धयाभिराम करें ति) तेभ सा हेवाय ते सूर्यामविमानने उधूपनी, પ્રવરકુંદરુષ્ણનામક સુગંધિત દ્રવ્યવિશેષની, તુરુષ્ક-લેબાનની ચોમેર પ્રસરતી ગંધથી
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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