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________________ सुबोधिनी टीका सु७४ स्तूपवर्णनम् ५०९ मङ्गलकानि ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि तेषां खलु चैत्यवृक्षाणां पुरतः प्रत्येकं प्रत्येकं मणिपीठिका प्रज्ञप्ता । ताः खलु मणिपीठिका: अष्ट योजनानि आयामविष्कम्भेण चत्वारि योजनानि बाहल्येन, सर्व मणिमय्य: अच्छा यावत्प्रतिरूपाः । तासां खलु मणिपीठिकानामुपरि प्रत्येकं प्रत्येकं महेन्द्रध्वजः प्रज्ञप्तः । ते खलु महेन्द्रध्वजाः पष्टि योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन योजनमुद्वेधेन, योजनं विष्कम्भेण, वज्रमयवृत्त लष्टसंस्थितसुश्लिष्टपरिघृष्टसृष्टसुप्रतिष्ठिताः है, per saat ast निर्मल है. वडे सुहावने लगते हैं, उद्योत सहित हैं, प्रासादीय हैं दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं ( तेसि णं वेइयरु'क्खाणं उचरिं अट्ठमंगलगा झया छत्ताइच्छता) इनचैत्यवृक्षों के ऊपर आठ मंगलक हैं, ध्वाजाए हैं, और छत्रातिच्छत्र हैं ( तेर्सिणं चेइयरुक्खाणं पुरओ पन्तेयं२ मणिपेडिया पण्णत्ता) उन चैत्यवृक्षों के सामने एक एक मणिपीठिका है (ताओ णं मणिपेढियाओ अट्टनोयणाई आयामविक्रमेणं, चत्तारि जोयणाई बाहल्लेणं, सन्नमणिमईओ, अच्छाओ जान पंडिख्याओ) मणिपीठिका आयामविस्तार की अपेक्षा आठ आठ योजन की हैं, इनकी स्थूलता चारचार योजन की है. ये सब सर्वथा मणिमय हैं, अच्छे हैं यावत् प्रतिरूप हैं । (तासि णं मणिपेढियाण उवरिं पत्तेयं२ महिंदज्झए पण्णत्ते) उन प्रत्येक मणिपीठिकाओं के ऊपर एकर महेन्द्र ध्वज कहा गया है (तेण म हिंदझया सद्वि जोयणाई उ उच्चरोण, जोयण उत्रेण, जोयण' विक्खभेण, रामठिय खुसिलिङ परिघट्टमहमुपइडिया विसिहा अणेगवर पंचव ईया, दसणिजा, अभिरुवा पडिवा) शेभनी छाया मडुन सारी छे, ओमनी પ્રભા બહુજ નિર્મળ છે. એએ ખૂબ જ સાહામણા લાગે છે. ઉદ્યોત સહિત છે, પ્રાસાદીય छे, इर्शनीय छ, अलि३५ छ, भने प्रति३५ छे. (तेसि णं चेहयरुक्खाणं उचरिं अट्टमंगलगा झया छत्ता इच्छत्ता) से चैत्यवृक्षानी उपर आठ आठ मंगली छ, ध्वन्लो। छे अने छत्रातिरछत्रो छे. (तेसि णं चेइयरुक्खाणं पुरभो पत्तेयं२ मणिपेढ़िया पण्णत्ता) से चैत्यवृक्षोनी सामे थे ये भणिपीठिछे (ताओ णं मणिपेढियाओ अष्टु जोगणाई आयाम विक्ख भेण चत्तारिजोयणाइ बाहल्लेण, सव्वमणिमईओ, अच्छाओ जाव रडि रुवाओ) में भणिचीतिप्रमो आयामविस्तारनी अपेक्षाये आठ आठ योननी है. गोभनी स्थूलता-मोटा - यार योजने भेटल छ, मे अघी सर्वथा भणिभय छे, छे छे, यावत् प्रतिज्ञय छे (तासि णं मंगिपेढ़ियाणं उवरिं पत्तेय२ महिंदज्झए पत्ते) तेरे रे! मीिाियोनी उपर भे शो! महेन्द्रध्वन हेवाय छ. (तेणं मदिज्झया सट्ठि जोयणाइ उड्ड उच्चत्तेणं, •
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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