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सुबोधिनी रीका. सू. ७४ स्तूपवर्णनम्
५०७ योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, अर्द्ध योजनम् उद्वेधेन, द्वे योजने स्कन्धाः, अर्द्ध योजन विष्कम्भेण, पड़ योजनानि विडिमाः, बहुमध्यदेशभागे . अष्ट योजनानि आयामविष्कम्भेण, सातिरेकाणि अष्ट योजनानि सर्वाग्रेण मज्ञप्ताः। तेषां खलु चैत्यवृक्षाणाम् अयमेतद्रूपो वर्णावासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-वज्रमयः मूलरजतसुप्रतिष्ठितविडिमाः रिष्टमयविपुलकन्दवैडूर्यरुचिरस्कन्धाः सुजातवरजातरूपप्रथमकविशालशालाः नानामणिमयरत्नविविधशाखाप्रशाखवैडूर्य पत्रतपनीयपत्रवृन्ताः जाम्बूनदरक्तमृदुकसुकुमारमवालपल्लववराङ्कुरधरा एक२ चैत्यक्ष कहा गया है। (तेण चेइयरुक्खा अट्ठजोयणाई उडु उच्चत्तरोण') ये चैत्यक्ष आठ आठ योजन की ऊंचाइ वाले हैं (अद्धजोयण उव्वेहेण दो जोय. णाई खधा, अद्धजोयण विक्ख भेण, छजोयणाई विडिमा बहुमज्झदेसभाए, इमका- उद्वध आधेयोजन का है अर्थात् इनका मूलभाग जमीन में आधे योजन तक नीचे गया हुआ है. इनका स्कन्धभाग दो२ योजन का है. इनके मध्यभाग की उर्ध्वगत शाखाए छहछह २योजन की हैं (अट्ठजोयणाई आयामविक्ख भेणंसाइरेगाई अझ जोयणाई सनग्गेण पण्णत्ता) इनकी-विडिमाओं का आयाम • और विस्तार आठ आठ योजन का है. तथा ये सर्वाग्र की अपेक्षा से-चैत्यक्ष
के सर्वोपरिभाग की अपेक्षा से कुछ अधिक आठ आठ योजन के हैं। (तेसि णं चेइयरुक्खाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते) इन चैत्यवृक्षों का वर्णावास इस प्रकार से कहा गया है-(तं जहा-चयरामयमूलरयणसुपइट्टियविडिमा, रिट्ठामयविउलकंदवेरुलियरुइरखंधा, सुजायवरजायख्वपढमगविसालसाला णाणाभलिपीनी 8५२' मे मे शैत्यक्ष ४डवाय छ. (तेणं चेइयरूक्खा - अट्ठजोयणाइ उड़ उच्चत्रोणं) L शैत्यक्षा 8 योन. रेसी याstu छ. (अद्धजोयणं उन्हेणं दो जोयणाई खधा, अद्धजोयणं, विक्ख भेणं. छजोयणाई विडिमा बहुमज्झदेसभाए) अभी वे अपायान । छ-मेटले भने। મૂળભાગ જમીનમાં અર્ધાજન સુધી–બે ગાઉ સુધી નીચે પહોંચેલે છે. એમને રધભાગ બે જનન છે, એમને વિસ્તાર અર્ધાયેજન જેટલું છે. એમના મધ્યભાગની Gandमामा छ योनिक्षी छ.. (अजोयणाई आयामविक्ख भेण, साइ. रेगाई अजोयणाइ सधग्गेणं पण्णत्ता) मेमना-विउमा-माना-मायाम मने વિસ્તાર આઠ જન જેટલા છે. તેમજ એ સર્વાગ્રની અપેક્ષાએ–ચૈત્યવૃક્ષનાસપરિ मानी अपेक्षाथी 218 या४न ४२त सडक वधारे छ. (तेसि ण चेइयरुक्खाण
इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते) L शैत्यक्षा वास २ प्रमाणे वाय छ. . (त. जहा वयराम यमूलरयणसुपइ हियविडिमा,रिट्ठामय विउलकंदवेरुलियरुहर