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________________ सुबोधिनी टीका' सु ७३ अक्षपाटस्थितवस्तुनिरूपणम् ५०१ योजनानि बाहल्येन. सर्वमणिमय्यः अच्छाः यावत् प्रतिरूपाः। तासां खलु उपरि प्रत्येक प्रत्येक स्तूपः प्रज्ञप्तः। ते खलु स्तूपाः षोडश योजनानि पाया। मविष्कम्भेण, सातिरेकाणि पोडश योजनानि ऊ मुच्चत्वेन, श्वेतानि शङ्का कुन्ददकरजोऽमृतमथितफेनपुञ्जसन्निकाशाः सर्वरत्नमयाः अच्छा. यावत प्रतिरूपाः। लेषां खलु स्तूपानामुपरि अष्टाष्ट मङ्गलकानि ध्वजाः छत्रातिच्छयाओ सोलमजोयणाई आयामविकख भेण-अजोयाइ 'बाहलण सव्वमणिईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ) ये मणिपीठिकाएँ आयाम और विष्कम को अपेक्षा सोलह योजल की हैं तथा मोटाई में ये आठ योजन की हैं ये सब सर्वथा मणिमय है तथा आकाश एवं स्फटिकमणि के समान निर्मल हैं यावत् प्रतिरूप हैं। (तासि ण उरि पोय पोय पण्णत्ते) इन मणिपीठिकाओं के प्रत्येक मणिपीठिका ऊपर एक२. स्तूप कहा गया है. (तेण थूभा सोलसजोयणाई आयामविक्ख भेण, साइरेगाइं सोलमजोयणाई उड्डू उच्चत्तेण, सेया सवं ककुददगर यअमयमाहियफेणपुजसंनिगाला) ये रतूप आयाम एव विष्कम में सोलह सोलह योजन के हैं तथा १६ सोले२ योजन ले भी कुछ अधिक ऊंचे हैं. ये सब स्तूप श्वेतवर्ण के हैं. इसलिये शख अंकरत्न, कुन्दपुष्प, जलबिन्दु एवं अमृत के मथन से जायमान फेनपुंज के जैसे प्रभावाले देखाई देते हैं (सव्वरयणामया, अच्छा जाव पडिरूवा) ये स्तूप सर्वथा रत्नमयहैं, अच्छ हैं यावत् प्रतिरूप है (तेसिं ण थभाण उवरि अट मगलगा झया छत्ताइच्छत्ता जाच सहस्स०) उन स्तूपों के ऊपर आठ२ याओ सोलस जोयणाई आयामधिक्ख भेण अg जोयणाइ' बाहल्लेण सव्वमणिमईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ)ये भाशुपी मायाम मन विg: ભની અપેક્ષાથી સેળ જન જેટલી છે તેમજ મોટાઈમાં એ સાઠ જન જેટલી છે. આ બધી સર્વથા મણિમય છે તેમજ આકાશ અને સ્ફટિકમણિની જેમ નિર્મળ છે यावत् प्रति३५ छ.(तासिणं उवरि पत्तयं पतेय थभे पण्णी) ये मणिपायानी 8५२ हरे ४२४ माशुपी8t S५२ मे गे स्तू५ ४उपाय छ. (तेणं थमा सोलस जोय णाई आयामविक्खंभेग, साइरेगाई सोलस जोयणाइ उडू उच्चत्तण', सेया, संवंककुंददगरयअमयमहियफेण जसंनिगासा) ये स्तूप मायाम मन विष्णु ભમાં સોળ જન જેટલા છે. અને ૧૬ ચેંજન કરતાં પણ સહેજ વધારે ઊંચા છે. આ બધાસ્તૂપ શ્વેતવર્ણના છે. એટલા માટે એઓ શંખ, અકરત્ન, કુંદપુષ્પ, જલ. मिसने अभृतनना मथनथी उत्पन्न न 24 प्रमाण दाणे छ.(मम्वरयगा मया, अच्छा जाव पडिरूवा) से स्तूपो सक्था नभय छ, २७ छ, यावत् प्रति३५ छ. (तेसिं णं थभा गं उपरि अष्ट मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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